कागज़ की नाव बहाया करते थे बचपन में ,
बहती नाव देख खुश हो जाते थे बचपन में ।
रेत के घरोंदों का खेल हमने खेला बहुत था ,
किसी के घरोंदे उजाड़ देते थे हम बचपन में ।
यह सच है कि करते रहे हम शैतानियाँ बहुत ,
मगर मार भी बहुत पड़ती थी हमें बचपन में ।
आज भंवर से कश्ती निकालने का हौसला रखते हैं ,
आज उजड़े हुए घरोंदें बसाने का जिगर हम रखते हैं ।
बचपन की शैतानियों और मार से सीखा है हमने ,
मुल्क के लिए जान देने का जज्बा रखते हैं हम ।
माना कि रुकावटें बहुत हैं आज सियासत के दौर में ,
रुकावटों से निपटने का ये हुनर सिखा है पचपन में ।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
बहती नाव देख खुश हो जाते थे बचपन में ।
रेत के घरोंदों का खेल हमने खेला बहुत था ,
किसी के घरोंदे उजाड़ देते थे हम बचपन में ।
यह सच है कि करते रहे हम शैतानियाँ बहुत ,
मगर मार भी बहुत पड़ती थी हमें बचपन में ।
आज भंवर से कश्ती निकालने का हौसला रखते हैं ,
आज उजड़े हुए घरोंदें बसाने का जिगर हम रखते हैं ।
बचपन की शैतानियों और मार से सीखा है हमने ,
मुल्क के लिए जान देने का जज्बा रखते हैं हम ।
माना कि रुकावटें बहुत हैं आज सियासत के दौर में ,
रुकावटों से निपटने का ये हुनर सिखा है पचपन में ।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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