Pages

Followers

Sunday, August 11, 2013

kaagaj ki naav bahaayaa karate the

कागज़ की नाव बहाया करते थे बचपन में ,
बहती नाव देख खुश हो जाते थे बचपन में ।

रेत के घरोंदों का खेल हमने खेला बहुत था ,
किसी के घरोंदे उजाड़ देते थे हम बचपन में ।

यह सच है कि करते रहे हम शैतानियाँ बहुत ,
मगर मार भी बहुत पड़ती थी हमें बचपन में ।

आज भंवर से कश्ती निकालने का हौसला रखते हैं ,
आज उजड़े हुए घरोंदें बसाने का जिगर हम रखते हैं ।

बचपन की शैतानियों और मार से सीखा है हमने ,
मुल्क के लिए जान देने का जज्बा रखते हैं हम ।

माना कि रुकावटें बहुत हैं आज सियासत के दौर में ,
रुकावटों से निपटने का ये हुनर सिखा है पचपन में ।

डॉ अ कीर्तिवर्धन

No comments:

Post a Comment