अवस्थाएं[संपादित करें]
- ये अवस्थाएं निम्न लिखित हैं:
- सर्वप्रथम् वेदव्यास द्वारा रचित एक लाख श्लोको और १०० पर्वो का "जय" महाकाव्य, जो बाद मे महाभारत के रुप मे प्रसिद्ध हुआ।[1] सम्भावित रचना काल-(३१०० इसवी ईसा पूर्व)[2]
- दूसरी बार व्यास जी के कहने पर उनके शिष्य वैशम्पायन जी द्वारा पुनः इसी "जय" महाकाव्य को जनमेजय के यज्ञ समारोह में ऋषि मुनियो को सुनाया तब यह वार्ता "भारत" के रुप मे जानी गायी ।[1] सम्भावित रचना काल-(३००० इसवी ईसा पूर्व)
- तीसरी बार फिर से वैशम्पायन और ऋषि मुनियो की इस वार्ता के रूप मे कही गयी "महाभारत" को सुत जी द्वारा पुनः १८ पर्वो के रुप में सुव्यवस्थित करके समस्त ऋषि मुनियो को सुनाना।[1][3] सम्भावित रचना काल-(२००० इसवी ईसा पूर्व)
- सुत जी और ऋषि मुनियो की इस वार्ता के रुप मे कही गयी "महाभारत" का लेखन कला के विकसित होने पर सर्वप्रथम् ब्राह्मी या संस्कृत मे हस्तलिखित पाण्डुलिपियो के रुप मे लिपी बद्ध किया जाना| सम्भावित रचना काल-(१२००-६०० इसवी ईसा पूर्व)
- इसके बाद भी कई विद्वानो द्वारा इसमे बदलती हुई रीतियो के अनुसार फेर बदल किया गया, जिसके कारण उपलब्ध प्राचीन हस्तलिखित पाण्डुलिपियो मे कई भिन्न भिन्न श्लोक मिलते है, इस समस्या से निजात पाने के लिये पुणे मे स्थितभांडारकर प्राच्य शोध संस्थान ने पूरे दक्षिण एशिया में उपलब्ध महाभारत की सभी पाण्डुलिपियो (लगभग १०,०००) का शोध और अनुसंधान करके उन सभी मे एक ही समान पाये जाने वाले लगभग ७५,००० श्लोको को खोज निकाला और उनका सटिप्पण एवं समीक्षात्मक संस्करण प्रकाशित किया, कई खण्डों वाले १३,००० पृष्ठों के इस ग्रंथ का सारे संसार के सुयोग्य विद्वानों ने स्वागत किया।
- यूनान के पहली शताब्दी के राजदूत डियो क्ररायसोसटम(Dio Chrysostom) यह बताते है की दक्षिण-भारतीयों के पास एक लाख श्लोको का एक ग्रन्थ है[4] ,जिससे यह पता चलता है कि महाभारत पहली शताब्दी में भी एक लाख श्लोको का था। महाभारत की कहानी को मुख्य यूनानी ग्रन्थो इलियड और ओडिसी में बार-बार अन्य रुप से दोहराया गया, जैसे धृतराष्ट्र का पुत्र मोह, कर्ण-अर्जुन प्रतिसपर्धा आदि।[5]
- महाराजा शरवन्थ के ५वीं शताब्दी के तांबे की स्लेट पर पाये गये अभिलेख में महाभारत को एक लाख श्लोको का ग्रन्थ बतया गया है, संस्कृत की सबसे पुरानी पहली शताब्दी की एमएस स्पित्ज़र पाण्डुलिपि में भी महाभारत के १८ पर्वो की अनुक्रमणिका दी गयी है[6],जिससे यह पता चलता है कि इस काल तक महाभारत १८ पर्वो के रुप मे प्रसिद थी, हालांकि १०० पर्वो की अनुक्रमणिका बहुत प्राचीन काल में प्रसिद्ध रही होगी, क्योंकि वेदव्यास जी ने महाभारत की रचना सर्वप्रथम १०० पर्वो मे की थी, जिसे बाद मे सुत जी ने १८ पर्वो के रुप मे व्यवस्थित कर दिया।[7]
- पाणिनि(७००-५०० ईसा पूर्व) द्वारा रचित अष्टाध्यायी महभारत और भारत दोनो को जानती है।अतएव यह निश्चित है कि महाभारत और भारत पाणिनि के काल के बहुत पहले से ही अस्तित्व मे है।[8]
- महाभारत मे गुप्त और मौर्य राजाओ तथा जैन(१०००-७०० ईसा पूर्व) और बौद्ध धर्म(७००-२०० ईसा पूर्व) का भी वर्णन नहीं आता।साथ ही छांदोग्य-उपनिषद(१००० ईसा पूर्व) मे भी महाभारत के पात्रो को वर्णन मिलता है।अतएव यह निश्चित तौर पे १००० ईसा पूर्व से पहले रची गयी होगी।[8]
- महाभारत में प्राचीन वैदिक सरस्वती नदी का कई बार वर्णन आता है, बलराम जी द्वारा इसके तट के समान्तर प्लश पेड़ (यमुनोत्री के पास) से प्रभास क्षेत्र (वर्तमान रन ऑफ़ कच्छ) तक तीर्थयात्रा का वर्णन भी महाभारत में आता है, कई भू-विज्ञानी मानते हैं की वर्तमान सूखी हुई घग्गर-हकरा नदी ही प्राचीन वैदिक सरस्वती नदी थी, जो ५०००-३००० इसवी ईसा पूर्व बहती थी और लग्भग १९०० इसवी ईसा पूर्व में भूगर्भी परिवर्तनों के कारण सूख गयी थी, ऋग्वेद में वर्णित प्राचीनवैदिक काल में सरस्वती नदी को नदीतमा की उपाधि दी गई थी। उनकी सभ्यता में सरस्वती ही सबसे बड़ी और मुख्य नदी थी, गंगा नहीं।
- भूगर्भी परिवर्तनों के कारण सरस्वती नदी का पानी गंगा मे चला गया, और कई विद्वान मानते है कि इसी कारण गंगा के पानी की महिमा हुई।[9] इस घटना को बाद के वेदिक साहित्यो मे वर्णित हस्तिनापुर के गंगा द्वारा बहाकर ले जाने से भी जोड़ा जाता है क्योंकि पुराणो मे आता है कि परिक्षित की २८ पीढियो के बाद गंगा से बाड़ आ जाने के कारण सम्पूर्ण हस्तिनापुर पानी मे बह जाता है और बाद की पीढिया कौसाम्बी को अपनी राजधानी बनाती है। महाभारत मे सरस्वती नदी के विनाश्न नामक तीर्थ पर सुखने का सन्दर्भ आता है जिसके अनुसार मलेच्छो से द्वेष होने के कारण सरस्वती नदी ने मलेच्छ (सिंध के पास के)प्रदेशो मे जाना बंद कर दिया।
- इन सम्पूर्ण तथ्यो से यह माना जा सकता है की महाभारत ५०००-३००० इसवी ईसा पूर्व या निशिचत तौर पर १९०० इसवी ईसा पूर्व रची गयी होगी,जो महाभारत मे वर्णित ज्योतिषिय तिथियो से मेल खाती है। इस काव्य मेंबौद्ध धर्म का वर्णन नहीं है, अतः यह काव्य गौतम बुद्ध के काल से पहले अवश्य पूरा हो गया था।[10]
- भूगर्भी परिवर्तनों के कारण सरस्वती नदी का पानी गंगा मे चला गया, और कई विद्वान मानते है कि इसी कारण गंगा के पानी की महिमा हुई।[9] इस घटना को बाद के वेदिक साहित्यो मे वर्णित हस्तिनापुर के गंगा द्वारा बहाकर ले जाने से भी जोड़ा जाता है क्योंकि पुराणो मे आता है कि परिक्षित की २८ पीढियो के बाद गंगा से बाड़ आ जाने के कारण सम्पूर्ण हस्तिनापुर पानी मे बह जाता है और बाद की पीढिया कौसाम्बी को अपनी राजधानी बनाती है। महाभारत मे सरस्वती नदी के विनाश्न नामक तीर्थ पर सुखने का सन्दर्भ आता है जिसके अनुसार मलेच्छो से द्वेष होने के कारण सरस्वती नदी ने मलेच्छ (सिंध के पास के)प्रदेशो मे जाना बंद कर दिया।
- अधिकतर अन्य भारतीय साहित्यों के समान ही यह महाकाव्य भी पहले वाचिक परंपरा द्वारा हम तक पीढी दर पीढी पहुँचा है। बाद में छपाई की कला के विकसित होने से पहले ही इसके बहुत से अन्य भौगोलिक संस्करण भी हो गये हैं जिनमें बहुत सी ऐसी घटनायें हैं जो मूल कथा में नहीं दिखती या फिर किसी अन्य रूप में दिखती है।
संदर्भ[संपादित करें]
- ↑ 1.0 1.1 1.2 महाभारत-गीता प्रेस गोरखपुर, आदि पर्व अध्याय १,श्लोक ९९-१०९
- ↑ महाभारत मे ऐसा आता है की कुरुक्षेत्र के युद्ध के कछ दिनो बाद व्यास जी ने महाभारत की रचना की थी,क्योंकि कुरुक्षेत्र का युद्ध भारत मे पारम्परिक रुप से ३१०० ईसा पूर्व माना जाता है,इसलिये यह सम्भावित रचना समय दिया गया है हालांकि अधिकतर पाश्चात्य विद्वान महाभारत को १००० ईसा पुर्व लिखा मानते है और कुरुक्षेत्र युद्ध को १४००-१००० ईसा पुर्व परन्तु महाभारत मे दी गयी ज्योतिषिय गणणाए भी ३१०० ईसा पुर्व की ओर संकेत करती है
- ↑ महाभारत-गीता प्रेस गोरखपुर, आदि पर्व अध्याय २,श्लोक ८४
- ↑ द महाभारत-ए क्रिटिजम By सी.वी. वेदया p14
- ↑ मेक्स ड्न्कर, द हिस्ट्री आफ एनटिक्यूटि , भाग. 4, पेज. 81
- ↑ जरनल्स आफ अमेरिकन सोसाइटि
- ↑ गीता प्रेस गोरखपुर, आदि पर्व अध्याय १,श्लोक ९९-१०९
- ↑ 8.0 8.1 महाभारत और सरस्वती सिंधु सभ्यता लेखक-सुभाष कक
- ↑ जी नयूज-राजस्थान की कहानी
- ↑ पाण्डे, सुषमिता। गोविन्द चन्द्र पाण्डे: रिलीजियस मुवमेन्टस इन महाभारत”। आइएसबीएन ८१-८७५८६-०७-०।
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