कृति चर्चा:
जतन से ओढ़ी चदरिया: बुजुर्गों की अपनी दुनिया
चर्चाकार: संजीव
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[कृति
विवरण: जतन से ओढ़ी चदरिया, लोकोपयोगी, कृतिकार डॉ. ए. कीर्तिवर्धन, आकार
डिमाई, आवरण बहुरंगी-सजिल्द, पृष्ठ २५६, मूल्य ३०० रु., मीनाक्षी प्रकाशन
दिल्ली]
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साहित्य
का निकष सबके लिए हितकारी होना है. साहित्य की सर्व हितैषी किरणें वहाँ
पहुँच कर प्रकाश बिखेरती हैं जहाँ स्वयं रवि-रश्मियाँ भी नहीं पहुँच पातीं.
लोकोक्ति है की उगते सूरज को सभी नमन करते हैं किन्तु डूबते सूर्य से आँख
चुराते हैं. संवेदनशील साहित्यकार ए. कीर्तिवर्धन ने सामान्यतः अनुपयोगी -
अशक्त मानकर उपेक्षित किये जाने वाले वृद्ध जनों के भाव संसार में प्रवेश
कर उनकी व्यथा कथा को न केवल समझा अपितु वृद्धों के प्रति सहानुभूति और
संवेदना की भाव सलिला प्रवाहित कर अनेक रचनाकारों को उसमें अवगाहन करने के
लिए प्रेरित किया. इस आलोडन से प्राप्त रचना-मणियों की भाव-माला माँ
सरस्वती के श्री चरणों में अर्पित कर कृतिकार ने वार्धक्य के प्रति समूचे
समाज की भावांजलि निवेदित की है.
भारत
में लगभग १५ करोड़ वृद्ध जन निवास करते हैं. संयुक्त परिवार-प्रणाली का
विघटन, नगरों में पलायन के फलस्वरूप आय तथा आवासीय स्थान की न्यूनता के
कारण बढ़ते एकल परिवार, सुरसा के मुख की तरह
बढ़ती मँहगाई के कारण कम पडती आय, खर्चीली शिक्षा तथा जीवन पद्धति,
माता-पिता की वैचारिक संकीर्णता, नव पीढ़ी की संस्कारहीनता न उत्तरदायित्व
से पलायन आदि कारणों ने वृद्धों के अस्ताचलगामी जीवन को अधिक कालिमामय कर
दिया है. शासन- प्रशासन भी वृद्धों के प्रति अपने उत्तरदायित्व से विमुख
है. अपराधियों के लिए वृद्ध सहज-सुलभ लक्ष्य हैं जिन्हें आसानी से शिकार
बनाया जा सकता है. वृद्धों की असहायता तथा पीड़ा ने श्री कीर्तिवर्धन को इस
सारस्वत अनुष्ठान के माध्यम से इस संवर्ग की समस्याओं को न केवल प्रकाश में
लेन, उनका समाधान खोजने अपितु लेखन शक्ति के धनी साहित्यकारों को समस्या
के विविध पक्षों पर सोचने-लिखने के लिए उन्मुख करने को प्रेरित किया।
विवेच्य
कृति में २० पद्य रचनाएँ, ३६ गद्य
रचनाएँ, कीर्तिवर्धन जी की १२ कवितायेँ तथा कई बहुमूल्य उद्धरण संकलित
हैं. डॉ. कृष्णगोपाल श्रीवास्तव, डॉ. रामसेवक शुक्ल. कुंवर प्रेमिल, रमेश
नीलकमल, रामसहाय वर्मा, डॉ. नीलम खरे, सूर्यदेव पाठक 'पराग', जगत नन्दन
सहाय, पुष्प रघु, डॉ. शरद नारायण खरे, डॉ. कौशलेन्द्र पाण्डेय, ओमप्रकाश
दार्शनिक, राना लिघौरी आदि की कलमों ने इस कृति को समृद्ध किया है.
प्रसिद्द आङ्ग्ल साहित्यकार लार्ड रोबर्ट ब्राडमिग के अनुसार 'द डार्केस्ट क्लाउड विल ब्रेक व्ही फाल टु राइज,
व्ही स्लीप टु वेक'. डॉ. कीर्तिवर्धन लिखते है ' जिंदगी में अनेक मुकाम
आयेंगे / हँसते-हँसते पार करना / जितने भी व्यवधान आयेंगे'. कृति के हर
पृष्ठ पर पाद पंक्तियों में दिए गए प्रेरक उद्धरण पाठक को मनन-चिंतन हेतु
प्रेरित करते हैं.
रचनाकारों
ने छन्दमुक्त कविता, गीत, मुक्तिका, त्रिपदी (हाइकु), मुक्तक, क्षणिका,
लेख, संस्मरण, कहानी, लघुकथा आदि विधाओं के माध्यम से वृद्धों की समस्याओं
के उद्भव, विवेचन, उपेक्षा, निदान आदि पहलुओं की पड़ताल तथा विवेचना कर
समाधान सुझाये हैं. इस कृति की सार्थकता तथा उपयोगिता वृद्ध-समस्याओं के
निदान हेतु नीति-निर्धारित करनेवाले विभागों, अधिकारियों, समाजशास्त्र
के प्राध्यापकों, विद्यार्थियों के साथ उन वृद्ध जनों तथा उनकी संतानों के
लिए भी है. इस जनोपयोगी कृति की अस्माग्री जुटाने के लिए कृतिकार तथा इसे
प्रस्तुत करने के लिए प्रकाशक धन्यवाद के पात्र हैं.
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