सुरसरि के विशेषांक हेतु --
कीर्ति दशक
मित्र कीर्तिवर्धन मिले , सखा कृष्ण सा साथ ,
अकिंचन था-किंचन हुआ ,थामा जब से हाथ।
साहित्य जगत का सुदामा , मैं था निपट अनाथ ,
मेरी हर नव कृति को , किया समीक्ष्य सनाथ।
एक नहीं -बहु रूप हैं , सदगुण छिपे अनेक ,
नाना रूपों में तदपि , मानव है वह एक।
दशक पूर्व कि मित्रता , दिन दिन होती दून ,
अहम् नहीं -किंचित कभी , ऐसे मानंव न्यून।
मुख पर स्मिति की सम्पदा , चेहरा कमल समान ,
शरणागत जो भी हुआ , मिला अमित सम्मान।
गुरु हैं मेरे - मित्र भी , कहते वृद्ध जवान ,
मुझमे साहस भर दिया , कह कर मुझे महान।
प्रथम प्रेरक सह धर्मिणी , मिला विरह वरदान ,
द्वितीय मित्र गुरु सम मिले , दिया अलौकिक ज्ञान।
साहित्य जगत के धनुर्धर , अचूक लक्ष्य सन्धान ,
पा कर तुमसे प्रेरणा , सदा लक्ष्य पर ध्यान।
अभी “ पथिक “ हूँ राह का , डगर कटीली धार ,
अभिमन्यु सम व्यूह में , कैसे पाऊँ पार ?
“ सुरसरि “ तुम पर केंद्रित , ” कल्पान्त “कि शान ,
पथ प्रशस्त हो आपका , गाउँ मंगल गान।
सीता राम चौहान “ पथिक”
सी -8 / 234 ( नानक कुञ्ज )
केशव पुरम
नई दिल्ली -110035
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09650621606
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