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Wednesday, October 30, 2013

samikshaa " divyaa " dr indu bhushan mishr devendu

                     दिव्य है “ दिव्या “

“ त्रयाणां भक्ति -ज्ञान -कर्मणामेकत्र त्रिवेणी सङ्गमस्वरूप: डॉ.देवेन्दुकृत नवीनोSयं प्रयासो दुर्गाडिघकन्जुषां हिंदी भाषानुरागिणां भक्तजनाSच कृते कलपवल्लीव विविधसदभीष्टपुरको भविष्यतीत्याशासे  । “

                                                                                                                  पंडित राधा कृष्ण जोशी

डॉ इंदु भूषण मिश्र “ देवेन्दु “ द्वारा रचित “ दिव्या  “ जो श्री दुर्गा सप्तशती का हिंदी रूपांतर है , पर पंडिर राधा कृष्ण जोशी के उपरोक्त उदगार डॉ देवेन्दु कि बौद्धिक तेजस्विता का सम्पूर्ण परिचय है।

भाव -भाषा-शैली तथा कविता कि दृष्टि से “ दिव्या” डॉ देवेन्दु कि हिंदी पद्यानुवाद में महत्वपूर्ण कृति है।  यह दुर्गा सप्तशती का मात्र हिंदी रूपांतर नहीं है अपितु सप्तशती के मूल पाठ का भावपूर्ण संरक्षण भी है।  इसमे हिंदी भाषा में ही पूजन विधि को भी संजोया गया है।  दुर्गा सप्तशती में सात सौ श्लोक हैं।  सभी श्लोकों को छंद - रस कि चासनी में डुबोकर , भारतीय संस्कृति व सभ्यता के संरक्षण ,,पोषण  व प्रसारण में आलोकित किया गया है।  वस्तुत: दुर्गा सप्तशती मार्केण्डय पुराण में वर्णित गूढ़ रहस्य युक्त , सर्वदा मंगलकारी उपासना है।  इसका गहनता से अध्यन , चिंतन , मनन करना तथा भावार्थ समझना कठिनतर कार्य है जिसे कोई मनीषी ही समझ सकता है।

डॉ देवेन्दु संस्कृत , हिंदी व अंगिका के प्रखर विद्वान हैं।  आपकी पहचान साहित्यकार , कवि , अनुवादक , समीक्षक ,आलोचक के रूप में है।  शिक्षा के क्षेत्र में आप विज्ञान स्नातक ,संस्कृत स्नातक ,संस्कृत-हिंदी व दर्शन शास्त्र स्नातकोत्तर ,संस्कृत से पी एच डी , हिंदी में डी लिट् तथा बी टी बी एड , एल एल बी , सी ए एम एस  के साथ साथ संगीत प्रभाकर भी है।  विभिन्न भाषाओं के ज्ञाता डॉ इंदुभूषण मिश्र “ देवेन्दु “ द्वारा रचित “ दिव्या “ के सन्दर्भ में डॉ मुचकुंद शर्मा , बेगुसराय कि पंक्तियाँ उल्लेखनीय हैं ---

देख गया आद्यंत न पाया कहीं कभी भी कोई दूषण ,
वाणी के वर पूत ! पिरोया शब्द शब्द में अनुपम भूषण ।

अंगरत्न , कवि रत्न , शिखर कवि , हिंदी भूषण के अधिकारी ,
कवि “ देवेन्दु “ आपको पाकर माँ दुर्गा वाणी बलिहारी ।

यज्ञ पुरुष सारस्वत तप यह नवोपहार है , पुण्योदय है ,
कहलगावँ कि पावन गंगा में प्रभात का अरुणोदय है ।

हमारे शास्त्रों में साहित्य सृजन का उद्देश्य मानव कल्याण कहा गया है।  प्राचीन काल में जब संस्कृत भाषा अपने चरम पर थी , तब हमारे ऋषि -मुनियों ने मानव कल्याण हेतु संस्कृत में ग्रंथों कि रचना की।  कालक्रम के चलते आज संस्कृत का बोलबाला लुप्त प्राय: है।  ऐसी परिस्थितियों में हमारे मनीषियों द्वारा प्रवाहित ज्ञान गंगा के लुप्त होने का खतरा निरंतर बना रहता है।  अत: आवश्यकता है ऐसे मनीषियों कि जो हमारे पूर्वजों के ज्ञान भण्डार का सार समझकर सरल भाषा में आज कि पीढ़ी का मार्गदर्शन कर सकें।  भौतिक विलाश में डूबे मनुष्य को धर्म अध्यात्म का सार एवं उसकी उपयोगिता से अवगत कराते हुए भारतीय संस्कृति , सभ्यता का पोषण , संरक्षण एवं प्रसार कर सकें।  इस पुनीत कार्य को पूर्ण करने का दायित्व वहाँ किया डॉ इंदुभूषण मिश्र “ देवेन्दु “ ने।  इसे माँ दुर्गा कि कृपा ही कहा जाए कि आपका जन्म गंगा किनारे स्थित कहल गावँ में एक ऐसे परिवार में हुआ जहां सदैव से ही भक्ति एवं ज्ञान कि सरिता प्रवाहमान थी।

“ दिव्या “ को 21 अध्याय में बांटा गया है।  प्रथम में माँ दुर्गा के प्रति समर्पण से प्रारम्भ करके अध्याय ५ में कथावस्तु में प्रथम चरित्र ,माध्यम चरित्र तथा उत्तर चरित्र के माध्यम से राजा सुरथ तथा समाधि वैश्य पर माँ भगवती कि कृपाओं का वर्णन किया गया है।  अध्याय 6 में हिंदी में पूजन विधि का सरल परन्तु छंदोबद्ध वर्णन किया गया है जिसे एक साधारण व्यक्ति भी समझ कर अपने जीवन में आत्मसात कर सकता है।  अध्याय 7  से 13 तक ध्यान , सप्तश्लोकी दुर्गा , श्री दुर्गाष्टोक्तर शतनामस्तोत्र , देवी कवच , अर्गला स्तोत्र, किलक स्तोत्र तथा तंत्रोक्तरात्रिसूक्त का वर्णन किया गया है।  मात्र दो उदाहरणों से पुस्तक कि शैली एवं उपयोगिता दृष्टव्य है। . 14 वां भाग “ दिव्या “ है जिसमे श्री दुर्गासप्तशती का छंदोबद्ध हिंदी रूपांतर किया गया है --

लेकर देवी नाम शुभ , जगहित सादर श्रेय ,
कथा सुनाने यों लगे , ऋषिवर मार्कण्डेय।
सूर्यतनय सावर्णि जो , मनु अष्टम से ख्यात ,
उनकी मैं उत्पत्ति को , कहता विस्तृत तात।
                                                              ( प्रथम अध्याय )

द्वितीय अध्याय में श्री महा लक्ष्मी जी की प्रसन्नता के लिए कहते हैं----

घंटा चाप बाण फरसा असि शक्ति दंड वर ढाल ,
गदा वज्र मधुपात्र पदम् ओ चक्र अक्ष शुभमाल।
पाश कुंडिका शंख शूल निज हाथों में जगदम्ब ,
लिए हुई अति ही प्रसन्नमुख जो कमलस्थित अम्ब।
महिषासुरमर्दिनी महालक्ष्मी हैं उसे प्रणाम ,
जयति जयति जगदम्ब वरो वर मुझको नित्य ललाम।

श्री दुर्गा सप्तशती को हिंदी भाषा में सरलता , तरलता एवं गेयता के साथ प्रस्तुत कर डॉ देवेन्दु ने रामायण के सन्दर्भों कि यादें ताज़ा कर दी।  जिस प्रकार श्री वाल्मीकि कृत रामायण से अधिक लोकप्रिय, प्रमाणित ग्रन्थ श्री तुलसी दास रचित श्री रामचरित मानस बन गया है , जो जन जन में अपनी सरलता, तरलता तथा गेयता के कारण प्रसिद्द है , ठीक उसी प्रकार “ दिव्या “ भी निश्चित रूप से श्री दुर्गा सप्तशती का चर्चित ,प्रसिद्ध प्रमाणित ग्रन्थ साबित होगा , ऐसा मेरा पूर्ण विशवास है।

डॉ देवेन्दु जी कि अब तक 11 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं तथा कुछ प्रकाशित होने को तत्पर हैं-----

“मुट्ठी भर धूप “ में खड़ा रहकर “ , दोहाशतक “ का निर्माण करे ,
“ उजियाले कि और “ अग्रसर , “ वन्दनावली “ का गुणगान करे ।
“ प्रकृति और परम्परा “ का संरक्षक , “ दिव्या “ पूजन ध्यान करे ,
“ अथेति “ मन्त्र काव्य द्वारा , सरस्वती का अनुसंधान करे ।
“ बाबा जोगेश्वर नाथ चालीसा “ की रचना , संतों का सम्मान करे ,
“  वेदार्थ पदांजलि “ का गुंथन कर , वेदों का बखान करे ।
भाषा का गौरव अलंकार , ” राघवपाण्डवीयम “ में व्याकरण चर्चा ,
“अपनS  भारत देश वह “अंगिका में ,इंदु समस्या का निदान करे ।

कुछ बातें उन बातों की हैं , जो नहीं अभी चर्चा में हैं ,
“टुंगरती मुस्कानें “ नई कविता , आने कि आतुरता में है।
“ नन्ही दुनिया, समीक्षायन ,विविधा “,त्रिवेणी” का संगम हो ,
“सुलोचना “ सा महाकाव्य , “ मनSक गंध” कि प्रतीक्षा में है।
उपलब्धि और सम्मान जहां पर , खुद को गौरवान्वित पाते हैं ,
इंदु भूषण “ देवेन्दु “ से , “कीर्ति “ मिलने की उत्सुकता में है।

माँ दुर्गा से प्रार्थना है कि डॉ देवेन्दु स्वस्थ रहते हुए चिरायु हों तथा अनेकों ग्रंथों का प्रणयन कर लोक कल्याण हेतु कार्य करते रहें।  

पुस्तक---दिव्या
लेखक -डॉ इंदु भूषण मिश्र देवेन्दु
प्रकाशक -श्री दुर्गा प्रकाशन ,
             कहल गाँव , भागलपुर -813203 (बिहार )
पृष्ठ -160 , मूल्य --100 /-
संपर्क -09931094215



समीक्षक


डॉ अ कीर्तिवर्द्धन
विद्या लक्ष्मी निकेतन
53 -महा लक्ष्मी एन्क्लेव
मुज़फ्फरनगर -251001 ( उत्तरप्रदेश)
संपर्क -08265821800



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