Pages

Followers

Saturday, December 7, 2013

aurat tere roop anek

औरत तेरे रूप अनेक

मैंने देखा औरत को प्रेरणा बनते,
मैंने देखा औरत को वासना बनते।

औरत जो बनाती वुजूद किसी का,
औरत को देखा अपने वुजूद से लड़ते।

औरत ही है जहाँ में ममता की  मूरत,
औरत ही बनती है घृणा की भी सूरत।

औरत ने जब चाहा परिवार बनाया,
औरत ने पल में घर-बार मिटाया।

ममतामयी औरत कोमलांगी भी होती,
पलभर में औरत चामुंडा भी होती।

औरत में शक्ति की ताकत छुपी होती,
औरत में धरती सी सहन शक्ति भी होती।

औरत ही प्यार का है रूप सलोना,
औरत ही घृणा का है रूप घिनौना।

औरत के आँचल में है माँ की परिभाषा,
आँचल हटा औरत आधुनिकता की भाषा।

पूजनीय थी आजतक जग में जो औरत,
पैसों की खातिर बन गयी सामान है औरत।

डॉ अ कीर्तिवर्धन

No comments:

Post a Comment