बदलते दौर की हकीकत को, पहचानना सीखो,
दांतों के बीच जीभ को, सम्भालना सीखो।
माना कि जहन्नुम बनते जा रहे हैं, घर आजकल,
जहन्नुम में भी शैतान का दर्जा, पाना सीखो।
किसकी औकात है जो उठाये, वुजूद पर सवाल,
अपनी अहमियत को घर में बनाये रखना सीखो।
टूट जाता है अक्सर वो दरख्त, जो तना रहता है,
लचीलेपन का हुनर, जिन्दगी में लाना सीखो।
बच्चों का क्या, वो देखते हैं अपने चश्मे से दुनिया,
आज के हालत में भी, संस्कारों का दीप जलाना सीखो।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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