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Sunday, January 19, 2014

main kavi hun

गीत, ग़ज़ल ना रुबाई, मैं कहता हूँ,
जमाने की बात, जमाने को कहता हूँ।

आप झरने से हैं, किसी बादशाह के महल के,
मैं नदी की उन्मुक्त धार सा बहता हूँ।

नहीं जानता खिलवाड़ करना, शब्दों के साथ मैं,
पनघट पर पनिहारिन और गागर सा रहता हूँ।

छन्द-अलंकार के गहनों से सजी कविता नहीं मेरी,
अल्हड यौवना सा मस्त, अमीरों के तंज सहता हूँ।

संवेदनाओं के प्रति जागरूक, मगर खुदगर्ज नहीं हूँ,
मैं कवि हूँ, दर्द के भी दर्द का, दर्द कहता हूँ।

डॉ अ कीर्तिवर्धन

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