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Monday, January 6, 2014

tin muktak-jo log mulk chhodkar

तीन मुक्तक


जो लोग मुल्क छोड़कर, कहीं और बस गए,
उनसे तो भावनाओं के, रिश्ते तक कट गए।
आते हैं दो चार वर्ष में, कभी एक-आध बार,
मिलने की आस लिए, बाबा निकल गए।


बतलाया गया जब उनको कि माँ बीमार है,
तुम्हारे ही दीदार की, वह तलबगार है।
बोले ! इलाज कराओ, हम आ नहीं सकते,
पैसे भेज देंगे, जितने की दरकार है।


लगने लगा कि पैसा, अब हो गया भगवान,
भावनाओं का उसके सामने, नहीं कोई मुकाम।
माना कि बहुत कुछ मिलता, पैसे से बाज़ार में,
मगर पैसे के खेल में, बिगड़ जाती है संतान।



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