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Saturday, January 4, 2014

viksit mera desh

विकसित मेरा देश.......

भारत सदैव ही, एक विकसित देश है,

जहाँ की रज-रज मे मानवता का समावेश है |

विश्व बंधुत्व जहाँ धर्म है नि स्वार्थ सेवा जहाँ कर्म है

सहनशीलता व उदारमना,जिसकी नीतियाँ हैं

बुराइयों से लड़ना, जिसकी रीतियाँ हैं

योग जिसकी पूंजी है, ज्ञान जिसकी कुंजी है,

विश्व मे विकसित अकेला मेरा देश है |

जिसकी रग-रग मे सभी धर्मो के

रक्त का समावेश है |

हमारे वेद -पुराण साक्षी हैं हमारी समृधि के,

पाताल से आकाश तक हमारी तरक्की के |

क्या आज भी कोई सूर्य तक पहुँच पाया है?

मेरे देश के हनुमान ऩे बालपन मे ही सूर्य को खाया है|

ऋषियों ऩे केवल मन्त्रों द्वारा बिना यान के,

त्रिशंकु को सशरीर, स्वर्ग का द्वार दिखाया है|

ऐसे विकसित देश को कोई क्या विकसित कर पायेगा?

आर्थिक समृधि के नाम पर विकासशील कह पायेगा?

अंतर केवल इतना है हमको अपनी ताकत का भान नहीं,

कुछ जयचंद छुपे हैं घर में ,उन पर अपना ध्यान नहीं|

निज स्वार्थों के चलते जो meरे मुल्क को बेच रहे,

आरक्षण को आगे लाकर प्रतिभाओं से खेल रहे|

गौरी चमड़ी जिनको प्यारी कृष्णा का अपमान करें ,

विदेशी शिक्षा जिनको प्यारी देशी पर ना ध्यान धरें|

मेरे भारत की शिक्षा पर अनुसंधान हुआ करते हैं,

फिर विज्ञानं के नाम पर हम पर ही लादा करते हैं|

नीम ,हल्दी,तुलसी,पीपल सब भारत की देन है,

पेटेंट कानून बनाया उन्होंने उनकी समृधि की देन है|

हे भारत के धरा पुत्रों तुमने भारत को जाना है,

इंसानियत है गहना तुम्हारा शिव को तुमने जाना है|

राम बसे तेरी रग रग मे धर्म निरपेक्षता का बाना है,

सोते हुए सिंह पुत्रों को तुमको आज जगाना है|

हनुमान को शक्ति का भी, तुमको भान दिलाना है,

जामवंत बनकर तुमको नल-नील को बतलाना है,

जिस पत्थर पर "राम" लिखोगे पानी मे त़िर जाना है|

ऐसे समृद्ध विकसित देश को बस अग्रिम पंक्ति मे लाना है|


डॉ अ कीर्तिवर्धन

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