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Wednesday, February 19, 2014

कुछ दिनों से देख रहा हूँ कि समाज में महिलाओं पर अत्याचार बढ़ाते जा रहे हैं और उन सबके लिए आँख बंद करके पुरुषों पर आरोप भी लगाया जा रहा है। मैं यह तो नहीं कहता कि पुरुषों में खराब लोग नहीं हैं या सारे पुरुष ही अच्छे हैं, कोई यह भी तो बताये कि क्या सारे समाज को खराब करने का दोषी केवल पुरुष है ? महिलायें जो कि सभ्रांत घरों की आधुनिकाएं हैं ,वह तो सारा आरोप पुरुषों पर लगाकर बाल झटक कर बल खाती हुई चल देती हैं। कोई यह नहीं बताता कि उन महिलाओं को पढ़ाने वाला तथा आगे बढ़ाने वाला भी कोई ना कोई पुरुष ही था चाहे वह पिता हो,पति हो या भाई अथवा दोस्त हो। अर्धनग्न ,सडकों पर शराब,सिगरेट ,कल्बों में डांस , आधी रात को घूमना यह तो महिलाओं की आज़ादी है ,कुछ हो गया तो दोष पुरुष पर।  सभ्य घरों के लड़कों को भी देर रात तक घर से बाहर रहने पर माँ-बाप कि डाँट सुननी पड़ती है . विगत दिनों किसी ने कह दिया कि तमिलनाडु की महिलायें शालीनता से रहती हैं और वहाँ महिलाओं के प्रति अपराध दर बहुत कम है तो अनेक महिलाओं तथा उनके हिमायती संगठनों ने हल्ला मचा दिया। सवाल यह है कि इसमे गलत क्या कहा? फेस बुक पर सक्रिय अनेक पुरुष भी उनके समर्थन में मुखर हो गये। कारण शायद वह भी महिलाओं की वस्त्र मुक्त आज़ादी के समर्थक व प्रशंसक रहे हों।
विचार करें कि क्या गलत है या क्या सही ?

डॉ अ कीर्तिवर्धन

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