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Saturday, February 15, 2014

kaartviryarjun puran

राज राजेश्वर  कार्तवीर्यार्जुन पुराण खंड 5

हमारे धर्म ग्रंथों में अनेक पुराणो का वर्णन पाया जाता है,
जिसमे 18 महापुराण -
विष्णु,नारदी,भागवत, गरुड़, पदम्,बाराह,(सात्विक) ब्रह्म,ब्रह्मवैवर्त ,बामन, भविष्य, मार्कण्डेय तथा बृह्मांड (राजसी)  मत्सय, कूर्म, शिव(अग्नि), लिंग, और स्कन्द पुराणों को तामसी है।

इसके बाद  18 उप पुराणो का वर्णन मिलता है -
भगवत,माहेश्वर, बृह्मांड, आदित्य, पाराशर, सौर, नंदिकेश्वर,  साम्ब,कालिका, वारुण, औशनस, मानव, कपिल, दुर्वासस, शिवधर्म, वृहन्नारदीय, नरसिंघ तथा सनत्कुमार

तत्पश्चात अठारह अति पुराण पाये जाते हैं --
कार्तव, ऋजु, आदि, मुद्गल, पशुपति, गणेश, सौर, परानंद, वृहद्दर्य, महाभागवत, देवी,  काल्की,भार्गव, वशिष्ठ, कॉॅर्म,गर्ग, चंडी, लक्ष्मी

और इसके भी बाद हैं अठारह पुराण =
बृदिष्णु , शिव उत्तरकहनद, लघुवृहन्नारदिया ,मार्कण्डेय, वह्नि, भविष्योत्तर,  वाराह,स्कन्द,  वामन,वृहद्वामन , बृहन्मत्तस्य, स्वल्पमत्सय, लघुवैवर्त, तथा पांच  भविष्य पुराण

पुराणो  लम्बी श्रृंखला हमारे शास्त्रों में उपलब्ध है  एक और पुराण “राज-राजेश्वर कार्तवीर्यार्जुन पुराण” “क्यों?  इस बात को समझने के लिए सर्वप्रथम हमें जानना होगा कि पुराण क्या है ? पुरानी कथाओं ,परम्पराओं  आख्याओं का संग्रह है पुराण।  वायु पुराण में कहा गया है
“पुरा अपि नवम पुराणम “
तथा
पुरा परंपरा वक्ती पुराणं टेन वै स्मृतम्

कुल मिलाकर सार यही है कि समाज में पूर्व में व्याप्त परम्पराओं, आख्याओं, तथा व्यक्ति विशेष के इतिहास का शास्त्रानुसार संकलन/ महिमागान पुराण है।  विभिन्न ऋषि-मुनियों तथा विद्वानों ने अपनी रूचि, क्षमता तथा समाजोपयोगी विषयों को ध्यान में रखकर शास्त्रों का समुन्द्र  सम्बंधित सामग्री के रत्न तलाश  तथा पुराण में संकलित कर मानव  समाज के हितार्थ ऋषि धर्म का निर्वाह किया।

कालांतर में धर्म का पराभव काल चला या कहें कि कलयुग के दौरान धर्म के प्रति हमारी भावनाएं कुछ सुप्त हो गयी।  परिणामत:: अनेको अनेक धार्मिक  लुप्त हो। गए  अगर उपलब्ध भी हैं  पढने आले लोग नहीं मिल पाते।  कुछ भाषा की जटिलता तथा कुछ हमारी अज्ञानता व समय की कमी ने इस कार्य को और अधिक दुरूह करदिया। समाज में अनास्था प्रबल होने लगी।  है कि अपने धार्मिक -पौराणिक ग्रंथों का संरक्षण कैसे हो, तथा समाज में धर्म के बारे में आस्था कैसे पैदा की जाए ? ऐसे कठिन समय में सदैव ही कुछ ताकतें प्रभु द्वारा भूमि पर अवतरित की जाती हैं।  वर्त्तमान समय में ऐसी ही प्रभु प्रेरित शक्ति के रूप में हमारे सैम उपस्थित है श्री अशोक आनद जी। अशोक जी ने सर्वप्रथम देश में बिखरे धार्मिक- पौराणिक ग्रंथों को इकट्ठा करना प्रारम्भ किया।  जहां तक मुझे स्मरण है उनके संग्राहलय में 500  दुर्लभ ग्रन्थ मौजूद हैं। फिर शुरू हुआ कार्तवीर्यार्जुन पुराण का संकलन कार्य जो कि अब तक लगभग 2100 वृहद पृष्ठों तक पहुँच चुका है।

कार्तवीर्यार्जुन को जन साधारण में सहस्त्रबाहु के नाम से जाना जाता है।  यही भगवान् सहस्त्रबाहु हैहय समाज यानि कलचुरी वंशियों के इष्ट देव भी हैं। यधपि भगवान् सहस्त्रबाहु का वर्णन  वेदों,पुराणों, उपनिषदों व अन्य सभी धर्म ग्रंथों में पाया जाता है तथा वह सभी वर्गों के के भी पूजनीय भी हैं ,तथापि हैहय वंशियों के ईष्टदेव होने के कारण कलचुरी समाज में भगवान्   कार्तवीर्यार्जुन का महत्त्व अधिक है।  भगवान्   कार्तवीर्यार्जुन पर बिखरी पड़ी सामग्री को सन्दर्भों सहित एक स्थान पर इकट्ठा करने का दुष्कर कार्य किया है मेरे मित्र तथा बड़े भाई श्री अशोक आनंद जी ने।

जैसा कि मैंने पूर्व में ही कहा है कि पुराण का अर्थ पुराणी व्यवस्थाओं ,दर्शन, चिंतन का नवीनीकरण कर समाज को देना है।  इस सन्दर्भ में जब   कार्तवीर्यार्जुन पुराण की बात कर रहा हूँ तो बताता चलूँ कि यह मात्र भगवान्   कार्तवीर्यार्जुन पर केंद्रित नहीं है अपितु वैदिक काल से वर्त्तमान तक इतिहास कि पड़ताल करता , तात्कालिक ऋषि-मुनियों की गौरव गाथा सुनाता, देव-दानव-किन्नर का सच बताता, तंत्र-मन्त्र का रहस्य सुलझाता, राजाओं-महाराजों की  का परचम फहराता, धर्म ग्रंथों तथा पौराणिक शास्त्रों से रुबरु कराता, प्रभु स्मरण, पूजा पद्धति, लोक-परलोक, के  रहस्य, विभिन्न जाती-धर्मों की वंशावली, लुप्त प्राय विज्ञान का अध्यन कराता या संक्षेप में कहूं तो कोई विषय ऐसा नहीं है जिसको   कार्तवीर्यार्जुन में नहीं लिया गया हो , महा पुराण है।

 कार्तवीर्यार्जुन पुराण के मूल में यह भावना स्पष्ट है कि भगवान् सहस्त्रबाहु पर विभिन्न ग्रंथों में आयी सामग्री, सन्दर्भों को व्याख्या सहित एक जगह संकलित किया जाए ताकि आने वाली पीढ़ियां अपने युग पुरुष की शक्ति, बौद्धिक क्षमता, न्याय परायणता तथा साम्राज्य को जान सके। यह मात्र कुछ पुस्तकों से संकलन नहीं अपितु समुद्र मंथन के पश्चात निकला अमृत कुंड है।

स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरि जी महाराज के शब्दों में-
“श्री राज राजेश्वर   कार्तवीर्यार्जुन औरां पौराणिक परम्परा में वर्त्तमान कालिक सफल अभिनव प्रयोग तो है ही, पुराणों की मालिका का एक आकर्षक मणि (मोती) है जो आगे आने वाले समय में साहित्य प्रेमियों, शोधकर्ताओं के लिए शोध ग्रन्थ सिद्ध होगा तथा विद्वानो ,साहित्य्कारों के लिए आदरणीय साहित्य भण्डार। “

मैं अपनी सम्पूर्ण शक्तियों से भाई अशोक आनंद जी को नमन करता हूँ और भगवान्   कार्तवीर्यार्जुन से प्रार्थना करता हूँ कि आनद जी को और अधिक शक्ति प्रदान करें ताकि समाज के हितार्थ तथा धर्म का परचम फहराये रखने के लिए वह स्वस्थ रहते हर निरंतर क्रियाशील रह सकें।

डॉ अ कीर्तिवर्धन
विद्यालक्ष्मी निकेतन,
53-महालक्ष्मी एन्क्लेव
मुज़फ्फरनगर-251001
08265821800

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