सन्नाटे की आवाज़ से रोज ही, मैं रुबरु होता हूँ,
अक्सर ख्यालों में, सन्नाटे से मुखातिब होता हूँ।
जब से रहने लगा अकेला, माँ-बाप को छोड़कर,
सन्नाटे की हिचकियाँ सुन, जार-जार रोता हूँ।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
अक्सर ख्यालों में, सन्नाटे से मुखातिब होता हूँ।
जब से रहने लगा अकेला, माँ-बाप को छोड़कर,
सन्नाटे की हिचकियाँ सुन, जार-जार रोता हूँ।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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