छोटी सी बात का यूँ ही अफ़साना ना बनाओ,
सत्ता की याद, आँसुओं को दरिया ना बनाओ।
माना कि गम बहुत है, कुर्सी की जुदाई का तुम्हे
भ्रष्टाचार से लड़ने का, इसे बहाना ना बनाओ।
सच है कि तेरे सवालों को तवज्जों न मिली कहीं,
खिसिहायत में कानून का मजाक ना बनाओ।
आप के इल्जाम और आरोप, सब संभालें हैं हमने,
बाहर तोहमत, घर में मिलने का बहाना ना बनाओ।
शीला पर निशाना, निगाहें थी दिल्ली की कुर्सी पर,
लोकपाल की बातों से अब और बेवकूफ ना बनाओ।
छोड़ा था साथ अन्ना का, तुमने सत्ता की खातिर,
“आप” का मुखौटा लगा, मोदी को निशाना ना बनाओ।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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