आज मुझे बहुत दुःख है कि भा ज पा के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी ओछी राजनीति के चक्कर में फंस गये। औरों का तो मुझे पता नहीं परन्तु मुझे व्यक्तिगत रूप से दुःख हुआ। बात टोपी पहने की नहीं अपितु उनकी सियासत टोपी पहनाने की है। हमारे देश के उपराष्ट्रपति ने कुछ दिन पूर्व तिलक लगवाने से मना कर दिया था और एक सांसद ने वन्दे मातरम गाने से इंकार। आप क्या दर्शाना चाहते हैं राजनाथ जी मुझे पता नहीं मगर जिस व्यक्ति का सिद्धांत नहीं होता उसकी कोई दिल से इज़्ज़त नहीं करता।
अपने धर्म का पालन करना मानव की पहचान है,
गैरों को भी आदर देना धर्म का यही पैगाम है।
आपको समर्पित मेरी चार पंक्तियाँ ----
राजनाथ भी लिपट गए टोपी के माया जाल में,
खुद ही जाकर फंस गए, सियासत की चाल में।
था हौसला जिनके पास समंदर पार करने का,
बिन तैरे ही डूब गये, वोटों के सूखे ताल में।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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