श्री सचिन सिंघल
सचिव
भारत विकास परिषद (अमेटी )
मुज़फ्फरनगर
प्रिय सचिन,
मुझे यह जानकर अत्यंत प्रंशसा हुयी कि भारत विकास परिषद(अमेटी ),मुज़फ्फरनगर प्रतिवर्ष पर्व पत्रिका का प्रकाशन कर परिषद परिवार द्वारा किये गए सामाजिक कार्यों का लेखा-जोखा एवं आगामी वर्ष के लिए अपने दायित्वों का निर्धारण समाज के सम्मुख प्रस्तुत करता है।इस बार विकास परिषद और आगे बढ़ते हुये पर्व पत्रिका को समाहित कर स्मारिका का प्रकाशन करने जा रहा है।
वस्तुत: भारत संस्कारों, सभ्यता एवं संस्कृति का पोषक राष्ट्र है। निःस्वार्थ सेवा, सहयोग की भावना, उदारमना नीतियाँ तथा अतिथि देवो: भव यहां के मूल मन्त्र हैं। प्रभु के सम्मुख समर्पण "पाया तो प्रभु की कृपा है खोया तो अपनी गलती है" का भाव यानि अपनी उपलब्धियों पर गौरवान्वित ना होकर इसे प्रभु की कृपा मानना हमारा चिंतन है।
वैदिक काल से सम्पर्कों के माध्यम से ही वसुधैव कुटुंबकम का सपना सार्थक करना हमारी नीतियां रही हैं। भारत सदैव विश्व गुरु रहा है तथा सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में हमारे ऋषि-मुनियों की गाथाएँ व वहां के निवासियों से हमारे सम्बन्धों की गाथाओं की स्याही हमारे शास्त्रों-ग्रंथों में आज भी तारो-ताज़ा है। इसका एक मात्र कारण केवल हमारा ज्ञान नहीं अपितु सेवा, समर्पण, सहयोग, संस्कार व संपर्कों को जीवन्त रखने की हमारी परम्परा रही है। हम वसुधैव कुटुंबकम की हैं तो सर्वे सन्तु निरामया हमारा आदर्श वाक्य है।
भारत विकास परिषद अर्थात जिस संस्था का उद्देश्य ही भारत का विकास हो, और यह विकास केवल तब ही संभव है जब हम उपरोक्त पाँचों सकार (सेवा, समर्पण, संस्कार, सहयोग, संपर्क) का विकास कर सकें। मुझे यह जानकार अत्यंत प्रसन्नता हो रही है कि भारत विकास परिषद (अमेटी ) मुज़फ्फरनगर का नेतृत्व युवा हाथों में पल्लवित हो रहा है। यह भी सत्य है कि भारत विश्व में सर्वाधिक युवाओं का देश है। वैज्ञानिक खोजों ने आगे बढ़ने के अनेक अवसर हमें उपलब्ध कराएं हैं तो साथ ही साथ हमारी अध्यात्मवादी विचारधारा, संस्कार व संस्कृति पर प्रहार कर भौतिकतावादी विचारधारा को थोपने का भी प्रयास किया है। पश्छिम की जगमगाती भौतिकता ने हमारे युवाओं को दिग्भ्रमित किया है। उनके लिए भारतीय दर्शन चिंतन गौण होने लगा है। मैं इसे सांस्कृतिक संकटकाल कहता हूँ।
इस सांस्कृतिक संकटकाल तथा भौतिकतावादी परिदृश्य में भारत विकास परिषद (अमेटी )मुज़फ्फरनगर,
अपनी वार्षिक पर्व पत्रिका तथा स्मारिका "स्पर्श" के माध्यम से समाज व ख़ास तौर पर युवाओं के हृदय को स्पर्श करते हुये सेवा -समर्पण, सहयोग, संस्कार व सम्पर्क के मूल मन्त्रों से संकट से निकालने में सक्षम व सफल होगी।
स्वामी विवेकानंद के महामंत्र "उत्तिष्ठ जाग्रत" को आपने अंगीकार किया है। मेरा विनम्र निवेदन है कि इस महामंत्र "उत्तिष्ठ जाग्रत प्राप्य वरान्तिबोधत:" को सम्पूर्णता से आत्मसात करें यानी "उठो-जागो और लक्ष्य प्राप्ति तक रुको नहीं" के महामंत्र उदघोष को विश्व के कोने कोने तक अपने कार्यों के द्वारा गुंजायमान कर दो।
भारत विकास परिषद का स्पर्श, मुझे रोमांचित कर गया,
सेवा करना परिषद का लक्ष्य, समर्पण से आगे बढ़ गया।
संस्कारों का संरक्षण-पोषण, भाविप का लक्ष्य जब बना,
सम्पर्क-सहयोग करने का अंदाज़, मुझे तरंगित कर गया।
मेरी अशेष शुभकामनायें।
शुभेच्छु
डॉ अ कीर्तिवर्धन
साहित्यकार
विद्यालक्ष्मी निकेतन
53 -महालक्ष्मी एन्क्लेव,
मुज़फ्फरनगर -251001 (उत्तर-प्रदेश)
08265821800
a.kirtivardhan@gmail.com
सचिव
भारत विकास परिषद (अमेटी )
मुज़फ्फरनगर
प्रिय सचिन,
मुझे यह जानकर अत्यंत प्रंशसा हुयी कि भारत विकास परिषद(अमेटी ),मुज़फ्फरनगर प्रतिवर्ष पर्व पत्रिका का प्रकाशन कर परिषद परिवार द्वारा किये गए सामाजिक कार्यों का लेखा-जोखा एवं आगामी वर्ष के लिए अपने दायित्वों का निर्धारण समाज के सम्मुख प्रस्तुत करता है।इस बार विकास परिषद और आगे बढ़ते हुये पर्व पत्रिका को समाहित कर स्मारिका का प्रकाशन करने जा रहा है।
वस्तुत: भारत संस्कारों, सभ्यता एवं संस्कृति का पोषक राष्ट्र है। निःस्वार्थ सेवा, सहयोग की भावना, उदारमना नीतियाँ तथा अतिथि देवो: भव यहां के मूल मन्त्र हैं। प्रभु के सम्मुख समर्पण "पाया तो प्रभु की कृपा है खोया तो अपनी गलती है" का भाव यानि अपनी उपलब्धियों पर गौरवान्वित ना होकर इसे प्रभु की कृपा मानना हमारा चिंतन है।
वैदिक काल से सम्पर्कों के माध्यम से ही वसुधैव कुटुंबकम का सपना सार्थक करना हमारी नीतियां रही हैं। भारत सदैव विश्व गुरु रहा है तथा सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में हमारे ऋषि-मुनियों की गाथाएँ व वहां के निवासियों से हमारे सम्बन्धों की गाथाओं की स्याही हमारे शास्त्रों-ग्रंथों में आज भी तारो-ताज़ा है। इसका एक मात्र कारण केवल हमारा ज्ञान नहीं अपितु सेवा, समर्पण, सहयोग, संस्कार व संपर्कों को जीवन्त रखने की हमारी परम्परा रही है। हम वसुधैव कुटुंबकम की हैं तो सर्वे सन्तु निरामया हमारा आदर्श वाक्य है।
भारत विकास परिषद अर्थात जिस संस्था का उद्देश्य ही भारत का विकास हो, और यह विकास केवल तब ही संभव है जब हम उपरोक्त पाँचों सकार (सेवा, समर्पण, संस्कार, सहयोग, संपर्क) का विकास कर सकें। मुझे यह जानकार अत्यंत प्रसन्नता हो रही है कि भारत विकास परिषद (अमेटी ) मुज़फ्फरनगर का नेतृत्व युवा हाथों में पल्लवित हो रहा है। यह भी सत्य है कि भारत विश्व में सर्वाधिक युवाओं का देश है। वैज्ञानिक खोजों ने आगे बढ़ने के अनेक अवसर हमें उपलब्ध कराएं हैं तो साथ ही साथ हमारी अध्यात्मवादी विचारधारा, संस्कार व संस्कृति पर प्रहार कर भौतिकतावादी विचारधारा को थोपने का भी प्रयास किया है। पश्छिम की जगमगाती भौतिकता ने हमारे युवाओं को दिग्भ्रमित किया है। उनके लिए भारतीय दर्शन चिंतन गौण होने लगा है। मैं इसे सांस्कृतिक संकटकाल कहता हूँ।
इस सांस्कृतिक संकटकाल तथा भौतिकतावादी परिदृश्य में भारत विकास परिषद (अमेटी )मुज़फ्फरनगर,
अपनी वार्षिक पर्व पत्रिका तथा स्मारिका "स्पर्श" के माध्यम से समाज व ख़ास तौर पर युवाओं के हृदय को स्पर्श करते हुये सेवा -समर्पण, सहयोग, संस्कार व सम्पर्क के मूल मन्त्रों से संकट से निकालने में सक्षम व सफल होगी।
स्वामी विवेकानंद के महामंत्र "उत्तिष्ठ जाग्रत" को आपने अंगीकार किया है। मेरा विनम्र निवेदन है कि इस महामंत्र "उत्तिष्ठ जाग्रत प्राप्य वरान्तिबोधत:" को सम्पूर्णता से आत्मसात करें यानी "उठो-जागो और लक्ष्य प्राप्ति तक रुको नहीं" के महामंत्र उदघोष को विश्व के कोने कोने तक अपने कार्यों के द्वारा गुंजायमान कर दो।
भारत विकास परिषद का स्पर्श, मुझे रोमांचित कर गया,
सेवा करना परिषद का लक्ष्य, समर्पण से आगे बढ़ गया।
संस्कारों का संरक्षण-पोषण, भाविप का लक्ष्य जब बना,
सम्पर्क-सहयोग करने का अंदाज़, मुझे तरंगित कर गया।
मेरी अशेष शुभकामनायें।
शुभेच्छु
डॉ अ कीर्तिवर्धन
साहित्यकार
विद्यालक्ष्मी निकेतन
53 -महालक्ष्मी एन्क्लेव,
मुज़फ्फरनगर -251001 (उत्तर-प्रदेश)
08265821800
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