शब्दों का महायुद्ध
दोस्तों अक्सर देखने मे आता है कि भारत मे लोकोक्तियों और मुहावरो का चलन बहुत ज्यादा होता है , यह हमारी अभिव्यक्ति का माध्यम है जिसमे समझदार लोग बिना किसी का नाम लिये इशारे इशारे मे बहुत कुछ कह जाते हैं जैसे कोइ व्यक्ति क़िसी काम को करना नही जानता मगर उस कार्य मे अनेक खोट निकलकर खुद को बचाना चाहता है तो कहते हैं "नाच ना जाने आँगन टेढ़ा" .इसी प्रकार अनेक उदाहरण मौजूद हैं। आज इस पोस्ट को लिखने का मकसद भी यही है कि हम वर्तमान चुनावी दौर मे इस प्रकार के शब्दों के शाब्दिक अर्थ न निकलकर वास्तविकता मे इनके अर्थ को देख़ें। मैंने कुछ बातें कहने का प्रयास किया है जो शिल्प क़ी दृष्टि से नियमों पर भले ही खरी ना हो मगर अपना अर्थ समझानी मे सक्षम अवश्य हैं--------
पढ़-लिख कर तो पा लिया, डिग्री का ढेर अपार,
गुणने से ही बढ़ता यहाँ, ज्ञान का भण्डार।
पढ़े लिखे करते रहे, शब्दों का अर्थ विचार,
गुणवान जाने यहाँ, कहाँ शब्दोँ क़ी मार।
"अन्धा बाँटे रेवड़ी, अपनो अपनौ को देय,"
पक्षपात की भावना, मुहावरा बतला देय।
शेर का पट्ठा वह, चक्रव्यूह दिया था भेद,
कहे बहादुरी की दास्ताँ, मूर्खों को सन्देह।
चूहा है छिप जायेगा, अपने बिल मे आज,
जैसे कायर पाक है, छुप कर करे आघात।
मेहनत कश मेहनत करें,निखट्टू करते मौज,
निखट्टू लोगों को कहें, हनीमून मनाते रोज।
डार्लिंग शब्द को दे दिये, बहुत सिमित आयाम,
डार्लिंग का विस्तार है, हर प्रिय का सम्मान।
बेटी शब्द की महिमा, जगत मे अपरम्पार,
सारे जग की बेटियाँ, भारत का परिवार।
पिता तक सीमित कर दिया, मूर्खो का है खेल,
भारत की संस्कृति कहे, बेटी है संसार।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
दोस्तों अक्सर देखने मे आता है कि भारत मे लोकोक्तियों और मुहावरो का चलन बहुत ज्यादा होता है , यह हमारी अभिव्यक्ति का माध्यम है जिसमे समझदार लोग बिना किसी का नाम लिये इशारे इशारे मे बहुत कुछ कह जाते हैं जैसे कोइ व्यक्ति क़िसी काम को करना नही जानता मगर उस कार्य मे अनेक खोट निकलकर खुद को बचाना चाहता है तो कहते हैं "नाच ना जाने आँगन टेढ़ा" .इसी प्रकार अनेक उदाहरण मौजूद हैं। आज इस पोस्ट को लिखने का मकसद भी यही है कि हम वर्तमान चुनावी दौर मे इस प्रकार के शब्दों के शाब्दिक अर्थ न निकलकर वास्तविकता मे इनके अर्थ को देख़ें। मैंने कुछ बातें कहने का प्रयास किया है जो शिल्प क़ी दृष्टि से नियमों पर भले ही खरी ना हो मगर अपना अर्थ समझानी मे सक्षम अवश्य हैं--------
पढ़-लिख कर तो पा लिया, डिग्री का ढेर अपार,
गुणने से ही बढ़ता यहाँ, ज्ञान का भण्डार।
पढ़े लिखे करते रहे, शब्दों का अर्थ विचार,
गुणवान जाने यहाँ, कहाँ शब्दोँ क़ी मार।
"अन्धा बाँटे रेवड़ी, अपनो अपनौ को देय,"
पक्षपात की भावना, मुहावरा बतला देय।
शेर का पट्ठा वह, चक्रव्यूह दिया था भेद,
कहे बहादुरी की दास्ताँ, मूर्खों को सन्देह।
चूहा है छिप जायेगा, अपने बिल मे आज,
जैसे कायर पाक है, छुप कर करे आघात।
मेहनत कश मेहनत करें,निखट्टू करते मौज,
निखट्टू लोगों को कहें, हनीमून मनाते रोज।
डार्लिंग शब्द को दे दिये, बहुत सिमित आयाम,
डार्लिंग का विस्तार है, हर प्रिय का सम्मान।
बेटी शब्द की महिमा, जगत मे अपरम्पार,
सारे जग की बेटियाँ, भारत का परिवार।
पिता तक सीमित कर दिया, मूर्खो का है खेल,
भारत की संस्कृति कहे, बेटी है संसार।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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