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Saturday, June 7, 2014

chalo lagaayen ek vriksh

चलो लगाएं एक वृक्ष, बचें ताल-तड़ाग,
चाहे जितनी तब यहाँ, नभ से बरसे आग।
धरती को पानी मिले, चुनरी धानी माथ,
वृक्ष धरा के आभूषण, मानव अब तो जाग।


डॉ अ कीर्तिवर्धन

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