सृष्टि के कण-कण में छिपा, है आयुर्वेद का सार,
धर्म का आधार बना, संयमित जीवन और विचार।
संयमित जीवन और विचार, हिंदुत्व का कहना,
झूठ-स्वार्थ, छल और कपट, बनता पाप का गहना।
कहे “कीर्ति” कविराय, बनी रहे तेरी कृपा दृष्टि,
त्रिलोक में अजब-अनूठी, प्रभु तेरी यह सृष्टि।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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