मित्रों, सादर नमस्कार
हम सब लोग बहुत सी रचनाएँ पढ़ते हैं, जिनमे से कुछ बहुत अच्छी होती हैं, कुछ सामान्य तथा कुछ सामान्य से भी नीचे की होती हैं। मेरा मानना है कि जिस किसी ने भी रचना सृजन किया है उसके लिए उसकी रचना बहुत अच्छी होती है।
दूसरी बात -यदि किसी रचना का भाव पक्ष मजबूत हो, उसमे सम्प्रेषणता हो तो मेरी दृष्टि में छंद- अलंकार व साहित्य के स्थापित नियमों के बिना भी वह रचना अच्छी है।
हमें सभी रचनाकारों का हौसला बढ़ाना चाहिए ----हाँ कुछ सुझाव देने हों तो सार्वजानिक नहीं बल्कि चैट बॉक्स में अथवा व्यक्तिगत फोन पर देने चाहियें।
इन्ही बातों को मैंने कहने का प्रयास किया है -
भावों से बनता सदा, सार्थक रचना बोध,
माँ सी ममता जहाँ मिले, वहीँ माँ की गोद।
झरना झर-झर बह रहा, कल-कल करे निनाद,
नहरों में जल तो बहुत, करें नहीं संवाद।
रचना भावों से भरी, ज्यों सहज गावँ की नार,
छंद-अलंकार लद गए, आधुनिकता का सार।
सुन्दर लगती है बहुत, सजी-धजी हो नार,
आधुनिकता ओढ़ कर, बने समाज पे भार।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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