खिंची रहती हैं खंजीरें, जब वो पास रहते हैं ,
उनके दूर चले जाने से, मन उदास रहता है ।
जुबान खामोश है और, खंजीरें जंगी हो गई ,
तन्हाँ सा जीवन, सूना सा आँगन लगता है ।
उनका दहकना शोलों के मानिंद, आँगन में ,
खोई हुई धूप का, एक हिस्सा सा लगता है ।
वो मेरे सामने होते हैं, तो नफ़रत उगती है ,
उनकी जुदाई में उन पर, रहम उमड़ता है ।
हैं कुछ मगरूर, मगर नादाँ हैं दिल से ,
उनकी नादानी पर, मेरा प्यार छलकता है ।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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