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Thursday, September 25, 2014

haden

          हदें

हदें निर्धारित हैं
नदी की, नहर की,
तालाब व समंदर की,
और स्त्री-पुरुष की भी।

मगर जब टूटती हैं हदें
बरसात में नदी-नहर
पोखर या समंदर की
आती है प्रलय और
कर जाती है सर्वस्व विनाश।

और बरसात के बाद
लौट जाते है वापस
अपनी हदों के बीच
नदी, नहर, पोखर  समंदर।

मगर टूटती हैं जब
स्त्री और पुरुष की हदें
ले जाती हैं सर्वनाश की और
समाज को व स्वयं को भी।

विडम्बना ! इसके बाद
कभी नहीं लौट पाती
हदों  के दरमियान हमारी हदें
और झूठे बराबरी के दम्भ में
हम खो देते हैं अपना अस्तित्व।

डॉ अ कीर्तिवर्धन

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