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Friday, September 26, 2014

mandir masjid dharm sikhaate, paap sihati madhushaalaa

श्री हरिवंश राय बच्चन जी की बहुचर्चित रचना -मंदिर मस्जिद बैर कराते, …के सन्दर्भ में

मंदिर-मस्जिद धर्म सिखाते, पाप सिखाती मधुशाला,
दो घूँट हाला घट भीतर, मानव बन जाता मतवाला।
चूहा खुद को शेर समझकर, पत्नी पर ही हाथ उठाता,
बच्चे भूखे ही सो जाते, जहाँ पसन्द हाला का प्याला।

भेदभाव न प्रभु करते, जो कोई उनकी शरण में आता,
मंदिर में आकर के देखो, मानवता है धर्म निराला।
मस्जिद की भी बात समझ लो,अल्लाह का पैगाम निराला,
दीन-दुःखी की खिदमत कर लो, कहता है यह अल्लाहताला।


डॉ अ कीर्तिवर्धन

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