आतंकवाद
सुनो मुझसे यारों आतंक की कहानी, निर्दोषों का मरना, आतंक की निशानी,
कितने ही बच्चे अनाथ हो गए हैं, कितने ही जवानों की मिट गयी जवानी ।
भाई की कलाई अब सूनी पड़ी है, माँ की झोली भी आंसुओं से भरी है,
घरों का नमॊ निशाँ तक बचा ना, चारों तरफ बस लाशें ही पड़ी हैं ।
कितनी मांगों से सिंदूर मिट गए हैं, बूढ़े पिता के कंधे भी झुक गए हैं,
माँ की आँखों की रोशनी गयी है, बहनों की हिफाजत कहीं खो गयी है ।
आगे बढ़ो उनके गम को मिटा दो, जीने का हौसला फिर से जगा दो,
दिलों में मानवता की अलख जगाकर, पीड़ित जनों को रहत दिला दो ।
बूढ़े पिता की लाठी बने हम, माँ की आँखों में सपने सज़ा दें,
बहनों को फिर से हौसला दिला कर, सुरक्षा में उनकी ढाल हम बना दें ।
नए आशियाने फिर से सज़ा दें, खुशियों के फिर से दीपक जला दे,
आँसू न बहने पायें किसी के, इंसानियत की ऐसी ज्योति जला दें ।
भाई की कलाई में राखी भी बांधे, उजड़ी मांगों में मोती सज़ा दें,
मानवता को आधार बनाकर, जीवन को फिर से जीना सीखा दें ।
आतंक चाहे जिस रंग में आये, बन्दूक से हो या बम से आये,
इंसानियत की नहीं झुकती पताका, आतंकियों को सन्देश यह सुनाएँ ।
माँ -बहन- बेटी उनकी भी होगी, जो आतंक के झंडाबरदार बैठे,
जाकर बता दो सरहद पार उनको, मानवता के सिपहसालार यहाँ बैठे ।
गर आँच उनकी बहन पर भी आई, अस्मत पे उसकी कहीं उंगली उठायी,
बूढ़ा पिता कहीं ले रहा हो हिचकी, माँ की मिटटी को जमीं मिल ना पायी।
उन्हें एक छोटा सा संदेशा दे दो, बहन बेटियों को भी उनकी बता दो,
भारत में इंसानियत जन-जन में ज़िंदा, माँ की मिटटी को इज्ज़त मिलेगी ।
मगर एक बात यह भी बता दो, आतंक के आगे हम ना झुकेंगे ।
बना देंगे खंडहर हर उस मकां का, आतंक जहां पर पनाह ले रहा है ।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
8265821800
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