चंदा मामा खेला करते, आँख मिचौली नभ में,
कभी दिखायी पड़ते पुरे, कभी छुप जाते नभ में।
कभी पूर्णिमा-कभी अमावस, पंद्रह दिन का खेल,
घटते -बढ़ते नित प्रतिदिन, पूजे जाते जग में।
नहीं सुहाता मामा को, अन्धेरों का राज कहीं,
निकल पड़े तारों के संग, देखो नीले नभ में।
दिन भर चन्दा मामा, सूरज से ऊर्जा पाते ,
रात हुई तो चन्दा मामा, शीतलता बरसाते।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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