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Sunday, January 25, 2015

deepak ki lau sa ---sudesh bhabhi ji

दीपक की लौ सा, दैदीप्यमान भाल है,
जूही की खुशबू सा, प्यारा नन्दलाल है।
कंचन सी आभा, मुख पर दमक रही,
विनीता के विनीत भाव, मुख पर अपार हैं।
जय प्रकाश स्वर्ग से, खड़े खड़े निहारते,
दयावती के संग कान्हा की, बलैया उतारते।
सुदेश आज प्रसन्न हैं, विनोद भी भावुक बने,
संकल्प के प्रतिरूप, कृष्ण को पुकारते।
नानी बनी रेनू जी, आज झूम झूम नाचती,
सौम्यता के आलोक में, शिशु को निहारती।
बाल वृन्द प्रसन्न हैं, ज्यों गोपाल संग ग्वाल हैं,
शुभकामनाएं अर्पित की, आरती उतारती।

डॉ अ कीर्तिवर्धन

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