जीते जी जो मिल सका ना, मरने पर मिल जाएगा ,
जो ख्वाब था मेरा अधूरा, अब फूल सा खिल जाएगा।
फर्क क्या पड़ता यहाँ पर, इसके या उसके साथ रहें ,
दौलत, पद का साथ होगा, कोई और भी मिल जाएगा।
लूट लो जी भर के यहाँ, यह सियासतों का दौर है ,
हिन्दू और मुस्लिम का लहू, अलग है यह शोर है।
कीमतें इंसान की, धर्म पर आधारित होती यहाँ ,
न्याय को तरसता कोई, सत्ता चरण धोती यहाँ।
वीरों के सर की कीमत, दो लाख लगाकर चल दिए,
आठ दिन बाद आये-आंसू बहाए, मुस्कराकर चल दिए ।
सत्ता का खेल देखकर, आज जर्रा जर्रा रो रहा ,
नौकरियाँ, पचास लाख, दुसरे से मुंह घुमाया चल दिए ।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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