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Saturday, March 7, 2015

naa sir par use baithaataa hun, na kadamon me jhukaataa hun

ना सिर पर उसे बैठाता हूँ, ना कदमों में झुकाता हूँ,
बराबरी का हक़ देकर उसको, दिल में सदा छुपाता हूँ।
करता हूँ सम्मान सदा ही, मैं संस्कारवान नारी का,
ममतामयी मूरत नारी के, चरणों में शीश नवाता हूँ।

डॉ अ कीर्तिवर्धन

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