जब तक तन में प्राण हैं, देह पर करे गुमान,
जब घट से निकले हवा, देह तब माटी समान।
ऐसी माटी देह पर, मत कर तू अभिमान,
नेकी की राह चलो, पीछे मिलता मान।
दुश्मन भी तारीफ़ में, पढ़े कसीदे रोज,
सत्कर्म आगे चले, हो मानव का सम्मान।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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