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Saturday, May 16, 2015

shiv prabhaakar ojhaa- samarpit pushpanjali

मानव चेतना को जागृत करने का प्रयास ----”समर्पित पुष्पांजलि”

                       मानव में मानवता जगे, हो जग का कल्याण,
                     संकीर्णता जग से मिटे, “प्रभाकर” का अभियान।

शिव प्रभाकर ओझा जी की नयी कृति “समर्पित पुष्पांजलि” पढने का अवसर मिला। इस पुस्तक में 75 रचनाओं को स्थान दिया गया है। मूलतः व्यवसायी प्रभाकर जी के अंदर छिपा मानव अक्सर उनकी रचनाओं के माध्यम से अपनी उपस्थिति दर्ज कराता रहता है। फैज़ाबाद (अयोध्या) के निवासी शिव प्रभाकर जी भगवान भक्त तो हैं ही, साथ ही उनके हृदय में साधू -संतों के प्रति भी अपार क्ष्रद्धा है ---

                                 ठाकुर हमारे रमण बिहारी
                                 हम हैं रमण बिहारी के,
                                  साधू सेवा धर्म हमारा
                                  काम न दुनियादारी से।

भारतीय संस्कृति में गुरु का स्थान भगवान से भी प्रथम बताया गया है। क्योंकि गुरु ही भगवान प्राप्ति का मार्ग बताता है। गुरु की महिमा को ओझा जी ने बहुत सुन्दर शब्दों में व्यक्त किया है ---

              पृथ्वी पर जीवन जीने का,  अधिकार दिया प्रभु ने सबको,
              तुम दया धर्म का पाठ पढ़ो, ‘प्रभाकर’ पाप नहीं करिये।
               जीवन अपना उज्जवल करने, गुरुदेव के चरणों में चलिए।

शास्त्रों में कहा गया है कि मातृ भूमि तथा मातृ भाषा का सम्मान करना हमारा दायित्व है। प्रभाकर जी के हृदय सागर में भी राष्ट्र भक्ति निरंतर हिलोरें लेती रहती है और वह कहते हैं --
                      हमारा भारत देश महान
                      है गौरव गाथा इसकी शान,
                       निराली है अपनी पहचान
                        करें हर भाषा का सम्मान।
कहा गया है कि सृष्टि के कल्याण के लिए भगवान शिव ने हलाहल पान किया था, गंगा के वेग को अपनी जटाओं में धारण किया तथा मानव हितार्थ आवश्यकता पड़ने पर तांडव भी किया। आज उसी परम्परा का निर्वाह करते हुए शिव (प्रभाकर) आपका आह्वान करते नजर आते हैं। वह कहते हैं कि जागो और मानवता के हितार्थ, धर्म के रक्षार्थ आगे बढ़ो और छल, कपट, स्वार्थ की दुनिया से बाहर निकल प्रकृति से जुडो और समाज से सभी प्रकार के प्रदुषण को ख़त्म करो।

ओझा जी किसी विषय या साहित्यक विधा के बंधन में बांधते नजर नहीं आते हैं बल्कि कबीर की भाँति समाज को जगाने की भूमिका में दिखाई पड़ते हैं।  इस संग्रह में संकलित सभी रचनाएं इसका प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। घर, परिवारम् समाज, राष्ट्र, भाषा, नारी, पर्यावरण, बचपन, गुरु और भगवान यानि कोई विषय ऐसा नहीं है जिस पर प्रभाकर जी की कलम न चली हो।  इन सभी रचनाओं में उनका मूल स्वर समाज सुधार ही ज्यादा नजर आता है।

मैं प्रभाकर ओझा जी की इस यात्रा का विगत 15 वर्षों का साक्षी रहा हूँ। आपकी पूर्व पुस्तक “तुलसी चरित्र” भी बहुत लोकप्रिय रही है। मेरी प्रभु श्री राम से प्रार्थना है कि शिव प्रभाकर ओझा जी की लेखनी निरंतर समाज को जागृत करती रहे।
अंत में अपने अनुज मित्र के व्यक्तित्व को समर्पित -----

अंधेरों से जूझना मेरी फितरत है
सूरज की किरण सा मुसाफिर हूँ,
डूबकर भी निकल आने का हौसला
बांटता हूँ ऊर्जा कभी थकता नहीं हूँ।

डॉ अ कीर्तिवर्धन
विद्यालक्ष्मी निकेतन
53 महालक्ष्मी एन्क्लेव
मुज़फ्फरनगर-251001 (उत्तर-प्रदेश)
08265821800

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