पत्र संख्या --45/ 15 दिनांक -15/05/2015
डॉ विनोद सोमानी “हंस”
42/43 जीवन विहार कॉलोनी,
आना सागर
अजमेर (राजस्थान) 305004
डॉ विनोद जी, सादर नमस्कार।
आपके द्वारा प्रेषित पत्र दिनांक -18 अप्रैल प्राप्त हुआ। यह जानकार अत्याधिक प्रसन्नता ह्युई कि आप लोगों ने आदरणीय कृष्ण चन्द्र टवाणी जी का अमृत महोत्सव मनाने का निर्णय लिया और मुझे भी इस पवित्र यज्ञ में अपनी शब्दांजलि देने का अवसर प्रदान किया।
अमृत महोत्सव के अवसर पर, सब गीत ख़ुशी के गायें,
“स्वर्णिम जीवन” सदा रहे, हों सबकी मंगल कामनाएं।
यूँ तो श्री कृष्ण चन्द्र टवाणी जी से व्यक्तिगत साक्षात्कार का मुझे कभी अवसर नहीं मिला, परन्तु अध्यात्म अमृत पत्रिका के माध्यम से मैं उनसे विगत 8 वर्षों से जुड़ा हूँ। अनेकों बार हमारी फोन पर भी वार्ता होती है। भारतीय संस्कृति, धर्म एवं अध्यात्म तथा गिरते सामाजिक मूल्यों पर उनकी चिंताओं का मैं भी हमस्वर हूँ। मेरा भी यह मानना है कि हम सबके सामूहिक प्रयास, अध्यात्म एवं धर्म पर चर्चा व चिंतन मनुष्य को नैतिक बल प्रदान करते हैं। अनेक पत्रिकाओं में आपके आलेख निरंतर प्रकाशित होकर समाज को दिशा देने में सक्षम हैं।
टवाणी जी की भाषा सरल, सहज है जिसके कारण आपके विचार पाठक के मर्म को छूते हैं। अध्यात्म के गूढ़ रहस्यों को भी सरलता से प्रस्तुत करने की आपकी शैली विलक्षण है।
मुझे याद है कि मेरी एक पुस्तक “जतन से ओढ़ी चदरिया” की सारगर्भित समीक्षा आपके द्वारा अध्यात्म अमृत के जून 2011 अंक में प्रकाशित हुयी थी। प्रकाशन के उपरांत अनेकों पाठकों ने उस समीक्षा की सराहना की और मुझसे संपर्क किया था।
अक्सर देखने में आता है कि सेवा निवृति के पश्चात व्यक्ति का जीवन एकाकी हो जाता है। कुछ लोग स्वयं को पूजा पाठ, तीर्थ यात्रा तक तो कुछ लोग व्यर्थ में इधर- उधर घूमकर ताश जैसे खेल या राजनितिक बहसों में उलझा लेते हैं। मगर कुछ बिरले लोग ऐसे भी होते हैं जो जीवन के चतुर्थ सोपान को सार्थक करते हैं। सोये हुए समाज को जागृत कर चेतना का संचार करना, मानव जीवन की सार्थकता से अवगत कराना तथा संस्कृति, सभ्यता एवं संस्कारों का संरक्षण का कार्य कर अपने जीवन को सफलता प्रदान करते हैं, ऐसे ही लोग चिर काल तक लोगों के दिलों में वास करते हैं ----
पिचहत्तर वर्ष के एक युवा, कृष्ण चन्द्र है नाम,
पुरुषोत्तम जी के पुत्र हैं, अजमेर जन्म स्थान।
निर्मला जीवन संगिनी, उनकी ऊर्जा का आधार,
सेवा निवृत जीवन को वह, दे रहे नए आयाम।
सरल- सहज, मृदुभाषी, लेखक- कवि महान,
धर्मात्मा- चिंतक, मनीषी, “कीर्ति” करे प्रणाम।
1941 में जन्मे कृष्ण चन्द्र टवाणी जी अपने बालयकाल से ही साहित्य से जुड़े रहे। अनेकों पुस्तकों के प्रणेता, कुशल संपादक, कवि हृदय टवाणी देश भर में सम्मानित किया गया। आप अनेकों संस्थाओं को अपना अमूल्य सहयोग प्रदान कर मानव जीवन के उद्देश्य को सार्थक बनाने के लिए प्रयत्न शील सबके लिए ही प्रेरणा स्रोत्र हैं। आपकी प्रकाशित एवं संपादित पुस्तकों के आधार पर निम्न पंक्तियाँ समर्पित हैं ---
रण क्षेत्र में कृष्ण ने सारे जग को, गीता का पाठ पढ़ाया,
कर्म करें,न फल की चाह हो, अध्यात्म अमृत बतलाया।
संस्कारों का पालन हो, सभ्यता- संस्कृति का संरक्षण,
शिक्षित हों भारत के बच्चे सब, ज्ञान मंदिर बसवाया।
पुष्कर धाम- ब्रह्मा की लीला, अद्भुत प्रभु की महिमा,
पुरुषोत्तम के घर आँगन में, एक तेजस्वी बालक आया।
कृष्ण चन्द्र ने शाश्वत स्वर से, किया आमंत्रण जग का,
जागे जीवन महके जीवन, अध्यात्म सन्देश सुनाया।
निर्मल गंगा की धारा से वह, प्रतिपल ऊर्जा पाते,
अनुज-महेश औ रेणु संग, निज परिवार सजाया।
भक्ति सुधा के माध्यम से, नित अमृत कलश छलकाते,
योग करे निरोग बताकर, अनमोल खजाना दिखलाया।
संस्कार सौरभ में लिखे रहस्य, नैतिकता की अलख जगाते,
दिव्य जीवन सदा रहे, गीता सार “कर्म सिद्धांत” बताया।
सत्य- निष्ठा और सरलता, समग्र गुणों की खान,
टवाणी जी पर कृपा महेश की, सहृदय कवि मन पाया।
मेरी अनेकोनेक हार्दिक शुभकामनाएं कि आप स्वस्थ रहते हुए हमारा मार्गदर्शन करते रहें।
हजार साल जीवन की कल्पना, मैं नहीं करता हूँ
आप रहें खुशहाल, कामना करता हूँ।
हो नाम आपका रोशन जग में युगों युगों तक,
शुभकामना वव्यक्त “कीर्ति” करता हूँ।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
विद्या लक्ष्मी निकेतन
53 महा लक्ष्मी एन्क्लेव,
जानसठ रोड
मुज़फ्फरनगर -251001
8265821800
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