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Thursday, June 11, 2015

chale gaye the door khisak kar mere pahalu se, yaad ab bhi hai

चले गये थे दूर खिसककर मेरे पहलू से, याद अब भी है,
उनके शरीर की छुवन का वो अहसास, याद अब भी है ।
चाहता रहा रखूँ दिल में छिपाकर, जमाने की निगाहों से,
बेनकाब घुमने पर उनकी ख़ुशी का मंजर, याद अब भी है ।
हो जाती थी खौफजदा देखकर गैर मर्दों को, अपनी महफ़िल में,
घबराकर मेरी बाहों में समाने का मंजर, याद अब भी है ।
चाहता था भुलाना उसकी यादों को, अपने दिलसे मगर,
ख़्वाबों में आती रहे वो मेरा ख्वाब, मुझे याद अब भी है ।
डॉ अ कीर्तिवर्धन

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