चले गये थे दूर खिसककर मेरे पहलू से, याद अब भी है,
उनके शरीर की छुवन का वो अहसास, याद अब भी है ।
चाहता रहा रखूँ दिल में छिपाकर, जमाने की निगाहों से,
बेनकाब घुमने पर उनकी ख़ुशी का मंजर, याद अब भी है ।
हो जाती थी खौफजदा देखकर गैर मर्दों को, अपनी महफ़िल में,
घबराकर मेरी बाहों में समाने का मंजर, याद अब भी है ।
चाहता था भुलाना उसकी यादों को, अपने दिलसे मगर,
ख़्वाबों में आती रहे वो मेरा ख्वाब, मुझे याद अब भी है ।
उनके शरीर की छुवन का वो अहसास, याद अब भी है ।
चाहता रहा रखूँ दिल में छिपाकर, जमाने की निगाहों से,
बेनकाब घुमने पर उनकी ख़ुशी का मंजर, याद अब भी है ।
हो जाती थी खौफजदा देखकर गैर मर्दों को, अपनी महफ़िल में,
घबराकर मेरी बाहों में समाने का मंजर, याद अब भी है ।
चाहता था भुलाना उसकी यादों को, अपने दिलसे मगर,
ख़्वाबों में आती रहे वो मेरा ख्वाब, मुझे याद अब भी है ।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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