कवि की राह --------(नितिन मनेरिया )
कुछ कलम का साथ
कुछ कदमों की चाप
मस्तक पर विचारों की लकीर
साथ ले चला हूँ। ...................
कुछ कदमों की चाप
मस्तक पर विचारों की लकीर
साथ ले चला हूँ। ...................
कवि की राह को चित्रित कराती यह पंक्तियाँ हैं कवि नितिन मनेरिया जी के प्रथम काव्य संग्रह “कवि की राह” से।
कविता क्या है ? यह प्रश्न सदियों से विद्वानो के लिए चर्चा का विषय रहा है। विषय को लेकर अनेकों मत एवं धारणायें प्रचलित भी हैं। मगर हमारा मानना है कि कविता व्यक्ति विशेष के भावों का दर्पण है। जब किसी व्यक्ति भावनाएं समाज का बिम्ब दिखाती हैं और समाज को समस्याओं का समाधान सहज -सरल भाषा में कराती हैं तब वह कविता समाज सापेक्ष कहलाती है और कवि की राह को एक मंजिल तक पहुंचाती है। कविता का संविधान क्या हो, उसमे रस, गंध, छंद का प्रावधान कितना हो, ऐसे सभी विषयों पर विद्वानों के अनेक विचार आये हैं। हमारा मानना की कविता उन्मुक्त नदी सी होती है जिसे चीर के बंधन में नहीं बांधा जा सकता है। कविता निर्बाध गति से गिरते पहाड़ी झरने सी होती है जिसमे संगीत तो है मगर उसे किसी निर्धारित राग में नहीं बांधा जा सकता, कविता स्वान्तः सुखाय है जिसे गूंगे के गुड की भाँति महसूस किया जा सकता है।
नितिन जी की कवितायें इन सभी कसौटियों पर बिलकुल खरी हैं। माँ तो जननी है में इनके विचार दृष्टव्य हैं-----
माता ही पेड़ की छाँव है
मेरे जीवन डूबने से बचाती
यही तो नाव है।
बहती जल धारा के समान निर्मल
मन अति कोमल है।
माँ की महिमा को सरलता, सहजता से महिमा मंडित करना ही कविता है। मनेरिया जी के सामाजिक सरोकारों को उकेरती, उनकी सामाजिक चिंताओं को उजागर करती कुछ पंक्तियाँ ---
शिक्षा की कमी तो कहीँ अंधविश्वास का कहर
अच्छे और बुरे का अंतर
जिंदगी की तन्हाई, टूटते घर
उफनता ये समन्दर
अब भी न जगे तो होगा बड़ा समर
उठो जागो और जगाओ शिक्षा की अलख।
शिक्षा के प्रति जनजागरण का यह प्रयास सराहनीय है। कवि का धर्म समाज जागृत करने का बताया गया है। नितिन जी ने इस बात को बखूबी समझा है। कविता सूर्य के नाम तथा गुरूजी दोनों ही बच्चों के लिए विशेष महत्वपूर्ण हैं----
दुनिया को रोशनी देता
नहीं लेता कभी थकने का नाम
सूर्य से बनते दिन रात, सुबह शाम
शीत बसन्त ग्रीष्म वर्षाकाल
ये मौसम बनाने का काम
सौरमंडल के ग्रह लेते इसकी परिक्रमा
ये नहीं करता आराम।
“कवि की राह” संग्रह में नितिन जी ने 100 कविताओं का संग्रह किया है। जिनमे प्रकृति, पर्व, बिटिया, माँ, पिता यानी रिश्तों का संसार, महिला दिवस, सामाजिक सरोकार, प्यार, बिछोह और सबसे अधिक कवि धर्म पर नितिन जी की लेखनी ने अपने रंग बिखेरे हैं। नितिन मनेरिया जी की भाषा अत्याधिक सरल व सहज है। आपकी सभी कवितायें भाव प्रधान हैं। जब कविता में भाव प्रधानता होती है तभी वह पाठक को हृदय को स्पर्श करती है।
मेरी ईश्वर से प्रार्थना है कि नितिन जी निरंतर कवि की राह पर आगे बढ़ाते रहें। नित प्राप्त करें और समाज को जागृत करने के अपने अभियान में लेखनी को कागज़ के कैनवास पर निरंतर चलाते रहें।
कविता क्या है ? यह प्रश्न सदियों से विद्वानो के लिए चर्चा का विषय रहा है। विषय को लेकर अनेकों मत एवं धारणायें प्रचलित भी हैं। मगर हमारा मानना है कि कविता व्यक्ति विशेष के भावों का दर्पण है। जब किसी व्यक्ति भावनाएं समाज का बिम्ब दिखाती हैं और समाज को समस्याओं का समाधान सहज -सरल भाषा में कराती हैं तब वह कविता समाज सापेक्ष कहलाती है और कवि की राह को एक मंजिल तक पहुंचाती है। कविता का संविधान क्या हो, उसमे रस, गंध, छंद का प्रावधान कितना हो, ऐसे सभी विषयों पर विद्वानों के अनेक विचार आये हैं। हमारा मानना की कविता उन्मुक्त नदी सी होती है जिसे चीर के बंधन में नहीं बांधा जा सकता है। कविता निर्बाध गति से गिरते पहाड़ी झरने सी होती है जिसमे संगीत तो है मगर उसे किसी निर्धारित राग में नहीं बांधा जा सकता, कविता स्वान्तः सुखाय है जिसे गूंगे के गुड की भाँति महसूस किया जा सकता है।
नितिन जी की कवितायें इन सभी कसौटियों पर बिलकुल खरी हैं। माँ तो जननी है में इनके विचार दृष्टव्य हैं-----
माता ही पेड़ की छाँव है
मेरे जीवन डूबने से बचाती
यही तो नाव है।
बहती जल धारा के समान निर्मल
मन अति कोमल है।
माँ की महिमा को सरलता, सहजता से महिमा मंडित करना ही कविता है। मनेरिया जी के सामाजिक सरोकारों को उकेरती, उनकी सामाजिक चिंताओं को उजागर करती कुछ पंक्तियाँ ---
शिक्षा की कमी तो कहीँ अंधविश्वास का कहर
अच्छे और बुरे का अंतर
जिंदगी की तन्हाई, टूटते घर
उफनता ये समन्दर
अब भी न जगे तो होगा बड़ा समर
उठो जागो और जगाओ शिक्षा की अलख।
शिक्षा के प्रति जनजागरण का यह प्रयास सराहनीय है। कवि का धर्म समाज जागृत करने का बताया गया है। नितिन जी ने इस बात को बखूबी समझा है। कविता सूर्य के नाम तथा गुरूजी दोनों ही बच्चों के लिए विशेष महत्वपूर्ण हैं----
दुनिया को रोशनी देता
नहीं लेता कभी थकने का नाम
सूर्य से बनते दिन रात, सुबह शाम
शीत बसन्त ग्रीष्म वर्षाकाल
ये मौसम बनाने का काम
सौरमंडल के ग्रह लेते इसकी परिक्रमा
ये नहीं करता आराम।
“कवि की राह” संग्रह में नितिन जी ने 100 कविताओं का संग्रह किया है। जिनमे प्रकृति, पर्व, बिटिया, माँ, पिता यानी रिश्तों का संसार, महिला दिवस, सामाजिक सरोकार, प्यार, बिछोह और सबसे अधिक कवि धर्म पर नितिन जी की लेखनी ने अपने रंग बिखेरे हैं। नितिन मनेरिया जी की भाषा अत्याधिक सरल व सहज है। आपकी सभी कवितायें भाव प्रधान हैं। जब कविता में भाव प्रधानता होती है तभी वह पाठक को हृदय को स्पर्श करती है।
मेरी ईश्वर से प्रार्थना है कि नितिन जी निरंतर कवि की राह पर आगे बढ़ाते रहें। नित प्राप्त करें और समाज को जागृत करने के अपने अभियान में लेखनी को कागज़ के कैनवास पर निरंतर चलाते रहें।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
विद्यालक्ष्मी निकेतन
53 महालक्ष्मी एन्क्लेव
मुज़फ्फरनगर -251001 उत्तर-प्रदेश
08265821800
विद्यालक्ष्मी निकेतन
53 महालक्ष्मी एन्क्लेव
मुज़फ्फरनगर -251001 उत्तर-प्रदेश
08265821800
समीक्षित कृति -”कवि की राह”
कवि--नितिन मनेरिया
जे 46, हरिदास की मगरी,
उदयपुर-313001 राजस्थान
09413752497
कवि--नितिन मनेरिया
जे 46, हरिदास की मगरी,
उदयपुर-313001 राजस्थान
09413752497
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