मित्रों सादर नमस्कार
आजकल घर पर थोड़ा सा नवीनीकरण का कार्य शुरू किया जिसके कारण आप लोगों से भी संपर्क नहीं हो पा रहा है। इस बीच समाज के तथाकथित गरीब मजदूरों को जानने समझने का भी अवसर मिल रहा है। इसी अनुभव को लिखने का प्रयास ----
नीड का नव निर्माण आसान है,
नवीनीकरण मुश्किलों का काम है।
सोचा था एक झरोखा और खोल दूँ,
धीरे-धीरे बदल गया, सारा मकान है।
अर्थव्यवस्था इस तरह डगमगा गयी,
ज्यों भूकम्प से बहुमंजली मुकाम है।
कारीगरों का अजब खेल देखा यहाँ,
चार दिन मजदूरी, तीन दिन आराम है।
जाता हूँ रोज दफ्तर, छुट्टी नहीं लेता,
छुट्टियां लेना गरीब मजदूरों की शान है।
तकता हूँ राह मजदूरों की, दर पर अपने,
आ गए सुबह, मेरी ख़ुशी की पहचान है।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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