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Monday, June 8, 2015

nigaahen ghar ki chaukhat par, budhon ko yahaan dekhaa

निगाहें घर की चौखट पर, बूढ़ों को यहाँ देखा,
परिन्दों की राह तकते, दरख्तों को यहाँ देखा।
रिवाज अपनी बस्ती में, कुछ नया सा आया है,
बनाया नीड था जिसने, वृद्धाश्रम में यहाँ देखा।
खिलायी पेट भर रोटी, सहे खुद पर ही दुःख सारे,
बाप को रोटी की खातिर, तरसते हुये यहां देखा।  
जिनके घर गुलजार थे, खुदा की रहमत बरसती थी,
बूढी माँ को निज घर में, नौकर बनते यहाँ देखा।

डॉ अ कीर्तिवर्धन

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