मेरा देश भारत
कण -कण में जहाँ शंकर बसते, बूंद बूंद में गंगा,
जिसकी गौरव गाथा गाता, विश्व विजयी तिरंगा।
सागर जिसके चरण पखारे, और मुकुट हिमालय,
जन-जन में मानवता बसती, हर मन निर्मल चंगा।
वृक्ष धरा के आभूषण, और रज जहाँ की चन्दन,
बच्चा बच्चा राम-कृष्ण सा, बहती ज्ञान की गंगा।
विश्व को दिशा दिखाती, आज भी वेद ऋचाएं,
कर्मयोग प्रधान बना, गीता का सन्देश है चंगा।
"अहिंसा तथा शांति "मंत्र, जहाँ धर्म के मार्ग,
त्याग की पराकाष्ठा होती, "महावीर " सा नंगा।
भूत-प्रेत,अन्धविश्वाश का, देश बताते पश्छिम वाले,
फिर भी हम हैं विश्व गुरु, अध्यातम सन्देश है चंगा।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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