श्री अजीत कोठारी
संयोजक अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशन समिति
घंटाकर्ण महावीर एजुकेशनल ट्रस्ट
54 ताम्बावती मार्ग,
उदयपुर-313001 (राजस्थान)
“गुदड़ी के लाल कोठारी लाल” ग्रन्थ में प्रकाशनार्थ -----
“अनोखे हैं अनोखी लाल”
“चिंतन की चाँदनी” में, बैठकर विचार करें,
“शाकाहारी” जीवन हो, इसका प्रचार करें।
“पर्यावरण का संरक्षण”, वेदों का सार यही ,
कल्पना को त्याग, “यथार्थ” में विहार करें।
समाज सेवा लक्ष्य जिसने, जीवन का बना लिया,
निर्धन छात्रों को शिक्षा, यह संकल्प उठा लिया।
विधवायें जीवन में अपने, आर्थिक सुदृढ़ रहें,
धर्म प्रेमी कोठारी ने, सबको गले लगा लिया।
आदरणीय अनोखी लाल कोठारी जी के 75 वें जन्म दिवस पर आप सभी समाज सेवियों व धर्म प्रेमियों ने अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित करने का जो निर्णय लिया है वह प्रशंसनीय है। अमृत महोत्सव पर “गुदड़ी के लाल अनोखी लाल” ग्रन्थ श्री कोठारी जी की सामाजिक एवं साहित्यिक यात्रा का बहुत बड़ा ऐतिहासिक दस्तावेज तैयार होगा, ऐसा हमारा विश्वास है। इस शुभावसर पर इतिहास से जुड़ने के लिए मुझे भी अवसर मिला जिसके लिए आपका आभारी हूँ। यूँ तो व्यक्तिगत रूप से मेरा कोठारी जी से कभी मिलना नहीं हुआ मगर पत्रों तथा दूरभाष के द्वारा अनेक बार संपर्क अवश्य बना रहा। अनोखी लाल कोठारी जी का व्यक्तित्व एवं कृतित्व बहुत बड़ा है। ऐसे महान व्यक्ति के अमृत महोत्सव यज्ञ के शुभावसर पर प्रकाशित ग्रन्थ में अपनी शब्दांजलि देकर स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ।
अमृत महोत्सव के अवसर पर, सब गीत ख़ुशी के गायें,
स्वर्णिम जीवन सदा रहे, हैं हमारी मंगल कामनाएं।
कोठारी जी के मेधावी होने का अहसास तो उनके प्रधानाचार्य श्री आर के कौशिक जी को 1963 में ही हो गया था जब उन्होंने “विवेकानंद के विचारानुसार विश्व धर्म” पर 30 पृष्ठ का निबंध लिखकर प्रथम पुरस्कार पाया था। इसके पश्चात शासकीय सेवा में रहते हुए निष्ठा से नौकरी व समाज सेवा से निरंतर जुड़े रहकर कर्त्तव्य का पालन करते रहे।
सामान्यतः सेवानिवृति के पश्चात व्यक्ति का जीवन एकाकी हो जाता है। कुछ लोग स्वयं को पूजा-पाठ, तीर्थ यात्रा तो कुछ व्यर्थ की बातों में उलझा लेते हैं। मगर कुछ अनोखे लोग होते हैं जिन पर माँ वीणा वादिनी की भी कृपा होती है और प्रभु की अनुकम्पा भी। ऐसे लोग ही जीवन के चतुर्थ सोपान को नयी पहचान देते हैं। सोये हुए समाज को जागृत कर चेतना का संचार करना, मानव जीवन की सार्थकता से अवगत कराना तथा संस्कृति, सभ्यता-संस्कारों का संरक्षण व धर्म का प्रचार प्रसार का कार्य कर अपने जीवन को पूर्णता एवं सार्थकता प्रदान करते हैं। ऐसे ही लोग चिरकाल तक लोगों के दिलों में वास करते हैं और इतिहास में दर्ज किये जाते हैं।
पिचहत्तर वर्ष के एक युवा, अनोखी लाल है नाम,
तेज किरण जी के पुत्र हैं,सलमगढ़ जन्म स्थान।
आशा जीवन संगिनी, बनी ऊर्जा का आधार,
सेवानिवृत जीवन को नित, दिए नए आयाम।
सरल-सहज, मृदुभाषी, लेखक- कवि महान,
धर्मात्मा, चिंतक, मनीषी, “कीर्ति” करे प्रणाम।
कोठारी जी के परिजनों तथा मित्रों के अनुसार बचपन से ही उनकी प्रवृति धार्मिक व स्वभाव में समाज सेवा का जज्बा रहा है। अनेक भाषाओं व बोलियों के ज्ञाता अनोखी लाल जी का रचना संसार बहुत व्यापक है। देश की सभी प्रतिष्ठित साहित्यक पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशित होना तथा साहित्य की बहुत सी विधाओं में लेखन उनकी विशेषता है। निर्धन मेधावी विधार्थियों को छात्रवृति, गरीब विधवाओं को आर्थिक सम्बल, भूखों को भोजन दिलाना उनके जीवन का लक्ष्य है और इसके लिए सम्पूर्ण समाज तथा सामाजिक संस्थाओं को जोड़े रखना उनकी अपनी विशेषता। अनेक जिन मंदिरों का जीर्णोद्धार कराकर आपने धर्म और आस्था के प्रति अपना सहयोग दिया है जो अनुकरणीय है। जैन धर्म के अनुयायी श्री कोठारी जी के लक्ष्य “जिओ और जीने दो” तथा सिद्धांत “अहिंसा परमो धर्मः” की तरह ही स्पष्ट एवं समाजोपयोगी है।
अमृतमहोत्सव के इस शुभावसर पर मेरी अनेकोनेक हार्दिक शुभकामनाएं। आप स्वस्थ रहते हुए हमारा तथा समाज का मार्गदर्शन करते रहें।
हजार साल जीवन की कल्पना, मैं नहीं करता हूँ,
आप रहें सदा खुशहाल, कामना करता हूँ।
हो नाम आपका जग में, युगों- युगों तक,
शुभकामना व्यक्त यही मैं करता हूँ।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
विद्या लक्ष्मी निकेतन
53 महालक्ष्मी एन्क्लेव
मुज़फ्फरनगर-251001
उत्तरप्रदेश
08265821800
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