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Tuesday, October 20, 2015

kar rahaa maan ka apakaar tu

सम्मान लौटाने वाले नकली साहित्यकारों (  माफ़ करना जो सम्मान का अर्थ ही नहीं जानते वह साहित्यकार हो ही नहीं सकते ) को समर्पित ----

कर रहा मान का अपकार तू,
कह रहा खुद को कलमकार तू।
साहित्य जिसके लिए है साधना,
बिक रहा स्वार्थ के बाज़ार तू।

शोहरतें तुझको मिली सम्मान से,
सर तेरा तन गया था अभिमान से।
भेदभाव जब कलमकार करने लगा,
साहित्य सहम गया निज अपमान से।

डॉ अ कीर्तिवर्धन

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