मित्रों, आजकल दाल की बढ़ी कीमतों पर बहुत हल्ला मचा है, बात सही भी है। मगर देखने में यह भी आ रहा है कि हल्ला मचाने वाले वह गरीब लोग नहीं हैं जो इससे प्रभावित हैं बल्कि वह लोग ज्यादा हैं जिन्हे केवल राजनीति की रोटियाँ सेकनी हैं।
यह तो सच है कि सम्बंधित सरकारों को जमाखोरों के खिलाफ सख्त कार्यवाही करनी चाहिए और जनता को राहत मिलनी चाहिए मगर कुछ इस पर भी विचार करें----------
सस्ता चिकन भी ले लो, दाल भी ले लो,
दस रुपये किलो प्याज और आलू भी ले लो,
मगर लौट आओ उस दौर की आमद पर,
उसी दौर की तनख्वाह, मजदूरी भी ले लो।
वो स्कूल की पढ़ाई, वो शिक्षा का मतलब,
वो संस्कारों का रोपण, वो इन्सां का मजहब,
वो त्योहारों पर बनते नए कपड़ों की खुशियाँ,
ईद- दिवाली थे तब भाई- चारे का मकतब।
वह माँ का हाथ से मठरी- लड्डू बनाना,
कम खर्च करके भी घर को चलाना ,
बाज़ार के महंगे नाश्ते-मिठाइयों को छोडो,
मिल जाएगा अच्छे दिनों का खजाना।
दिखावे की आदत को ज़रा त्याग देखो,
सरकारी स्कूलों में अपने बच्चों को भेजो,
मौसम की सब्जी व फल से हो गुजारा,
संतुष्टि का रास्ता तब वहाँ पर खोजो।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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