यदि हमारे पास दुनिया का पूरा वैभव और सुख-साधन उपलब्ध हंै, परंतु शांति नहीं है तो हम भी आम आदमी की तरह ही हैं। संसार में मनुष्यों द्वारा जितने भी कार्य अथवा उद्यम किए जा रहे हैं सबका एक ही उद्देश्य है "शांति"।
सबसे पहले तो हमें जान लेना चाहिए कि शांति क्या है? असल में मुख से चुप रहना ही शांति नहीं है, अपितु मन का चुप रहना ही सच्ची सुख-शांति का आधार है। कहते हैं कि जहां शांति है, वहां सुख है। अर्थात सुख का शांति से गहरा नाता है। धन-दौलत से संसाधन खरीदे जा सकते हैं, परंतु शांति नहीं। अक्सर हम यही सोचते रह जाते हैं कि यह कर लूंगा तो शांति मिल जाएगी। आवश्यकताओं को पूरा करते-करते पूरा समय निकल जाता है और न तो शांति मिलती है और न ही खुशी।
खुशहाल पारिवारिक जीवन के लिए जरूरी है शांति। इसलिए अमूल्य शांति के लिए सबसे पहले हमें अपने आपको देखना होगा। अपने बारे में जानना होगा। मैं कौन हूं, कहां से आया हूं और हमारे अंदर कौन-कौन सी शक्तियां हैं, जो हम अपने अंदर ही प्राप्त कर सकते हैं। शांति का सागर परमात्मा है। हम परमात्मा की संतान हैं। जब हमारे अंदर शांति आएगी तो हमारा विकास होगा। जब विकास होगा तो वहां सुख का साम्राज्य होगा। यह प्रक्रिया बिलकुल सरल और सहज है, जिसके जरिए हम यह जान और पहचान सकते हैं। धर्म और शाश्वत सत्य को स्वीकारते हुए परमात्मा से अपने तार जोड़ें।
सबसे पहले तो हमें जान लेना चाहिए कि शांति क्या है? असल में मुख से चुप रहना ही शांति नहीं है, अपितु मन का चुप रहना ही सच्ची सुख-शांति का आधार है। कहते हैं कि जहां शांति है, वहां सुख है। अर्थात सुख का शांति से गहरा नाता है। धन-दौलत से संसाधन खरीदे जा सकते हैं, परंतु शांति नहीं। अक्सर हम यही सोचते रह जाते हैं कि यह कर लूंगा तो शांति मिल जाएगी। आवश्यकताओं को पूरा करते-करते पूरा समय निकल जाता है और न तो शांति मिलती है और न ही खुशी।
खुशहाल पारिवारिक जीवन के लिए जरूरी है शांति। इसलिए अमूल्य शांति के लिए सबसे पहले हमें अपने आपको देखना होगा। अपने बारे में जानना होगा। मैं कौन हूं, कहां से आया हूं और हमारे अंदर कौन-कौन सी शक्तियां हैं, जो हम अपने अंदर ही प्राप्त कर सकते हैं। शांति का सागर परमात्मा है। हम परमात्मा की संतान हैं। जब हमारे अंदर शांति आएगी तो हमारा विकास होगा। जब विकास होगा तो वहां सुख का साम्राज्य होगा। यह प्रक्रिया बिलकुल सरल और सहज है, जिसके जरिए हम यह जान और पहचान सकते हैं। धर्म और शाश्वत सत्य को स्वीकारते हुए परमात्मा से अपने तार जोड़ें।
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