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Tuesday, October 23, 2012

dilli


दिल्ली 
दिल्ली कभी नहीं चीखती ,
वह 
संवेदना शून्य है 
वहां बस सत्ता है,पैसा है 
और तरक्की है ।
स्त्री और पुरुष 
सब दौड़ रहे हैं 
पैसा पाने की अंधी दौड़ में ,
कुचलते हुए सभ्यता,संस्कृति 
और संस्कारों को ।

दिल्ली चाहती है 
अनुकरण करना 
अमेरिका का 
और विकास का मतलब 
मानती है 
बड़े-बड़े शोपिंग माल्स 
रात-दिन मॉल  व सडकों पर 
चहल कदमी,
नग्नता का प्रदर्शन  करते 
युवा  व अधेड़ नवधानाद्य .
पच्छिम का अनुकरण 
बड़ी आधुनिक गाड़ियां ,
क्लब व बार 
और 
आज़ादी के नाम पर 
जिस्मों से खिलवाड़ की संस्कृति,
सिगरेट ,शराब ,नशे का चलन व 
जिन्दा गोस्त की नुमायश ।

चमचमाती सड़कें,
चिकनी देह,
सत्ता के गलियारे 
बड़ी बुलंद इमारतें 
शॉपिंग  मॉल्स 
बड़ी-बड़ी गाड़ियां 
नग्नता 
शराब,सिगरेट ,मांसाहार 
उन्मुक्त जीवन 
सडकों व पार्कों में आलिंगन 
.........
.........
वह सब 
जिसकी कल्पना 
देवताओं को दुर्लभ 
मगर 
सभ्यता,संस्कृति और नैतिकता 
यानि 
पिछड़ेपन की निशानी ।
बस 
यही है 
वर्तमान दिल्ली की 
संक्षिप्त  कहानी ।

डॉ अ कीर्तिवर्धन 
8265821800

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