बड़ा आदमी
मैंने सोचा और विचारा
बड़ा आदमी बन जाऊं
टाटा और अम्बानी जैसा
पैसे से तौला जाऊं.
मैंने सोचा और विचारा
सी .ऍम.,पी.ऍम. बन जाऊं
देश विदेश मे घुमू हर पल
वी आई पी कहलाऊं.
मैंने सोचा और विचारा
शाहरुख जैसा बन जाऊं
ऐश्वर्या से गल बहिआं हों
हीरो शीरो कहलाऊं.
मैंने सोचा और विचारा
धोनी जैसा बन जाऊं
चौकों -छक्कों की बारिश हो
विज्ञापन ...मे छा जाऊं.
एक बार बच्चन जी बोले
कुछ दिन साथ हमारे आओ
बड़े आदमी कैसे रहते
खुद सब तुम देख के जाओ.
अपने मन से पीना खाना
गली सहर मे घूमने जाना
खेतों मे गन्ने का चखना
चलते फिरते गाना गाना
मक्का की रोटी का खाना
दूध जलेबी संग मे भाना
बड़ा आदमी बनकर भैया
भूल चूका हूँ गाँव मे जाना.
सगे सम्बन्धी घर पर आते
उनसे सुख दुःख का बतलाना
सक्रेटरी का डंडा सर पर
काम सदा नियम बतलाना.
अपने बच्चों से भी हमको
टाइम लेकर मिलाना होता
झूठी शान की खातिर हमको
अकड़ अकड़ कर चलना होता.
बड़ा आदमी बन कर भैया
भूल चूका हूँ चाचा मामा
छूट गई सब रिश्तेदारी
याद रहा मीटिंग मे जाना.
कौन जिया और कौन मरा
बातें सब छोटी मोटी
आया है जो कल जायेगा
उस पर क्या रोना धोना.
संवेदना के दो बोल भी
नहीं हमारे पास रहे
औपचारिकतावश पत्र भेजना
यह भी सेक्रेटरी का काम रहे.
अपनी मर्ज़ी से सो जाना
कभी सुबह देर से उठना
भूल चूका अमुवा की छावं
याद नहीं गंगा तट जाना.
खुल कर हँसना बातें करना
कभी साधारण बस मे चलना
सिमट गया सब घर के भीतर
मुश्किल है जन साधारण बनना.
चुपड़ी हो या रुखी खाना
आज़ादी का जश्न मनाना
बड़ा आदमी से बेहतर है
अच्छा आदमी तुम बन जाना.
मानवता की खातिर जीना
शिक्षित होना और बनाना
अपने अच्छे आचरण द्वारा
जग मे "कीर्ति "खूब फैलाना.
डॉ अ कीर्तिवर्धन
०९९११३२३७३२
a.kirtivardhan@gmail.com
meriudaan.overblog.com
मैंने सोचा और विचारा
बड़ा आदमी बन जाऊं
टाटा और अम्बानी जैसा
पैसे से तौला जाऊं.
मैंने सोचा और विचारा
सी .ऍम.,पी.ऍम. बन जाऊं
देश विदेश मे घुमू हर पल
वी आई पी कहलाऊं.
मैंने सोचा और विचारा
शाहरुख जैसा बन जाऊं
ऐश्वर्या से गल बहिआं हों
हीरो शीरो कहलाऊं.
मैंने सोचा और विचारा
धोनी जैसा बन जाऊं
चौकों -छक्कों की बारिश हो
विज्ञापन ...मे छा जाऊं.
एक बार बच्चन जी बोले
कुछ दिन साथ हमारे आओ
बड़े आदमी कैसे रहते
खुद सब तुम देख के जाओ.
अपने मन से पीना खाना
गली सहर मे घूमने जाना
खेतों मे गन्ने का चखना
चलते फिरते गाना गाना
मक्का की रोटी का खाना
दूध जलेबी संग मे भाना
बड़ा आदमी बनकर भैया
भूल चूका हूँ गाँव मे जाना.
सगे सम्बन्धी घर पर आते
उनसे सुख दुःख का बतलाना
सक्रेटरी का डंडा सर पर
काम सदा नियम बतलाना.
अपने बच्चों से भी हमको
टाइम लेकर मिलाना होता
झूठी शान की खातिर हमको
अकड़ अकड़ कर चलना होता.
बड़ा आदमी बन कर भैया
भूल चूका हूँ चाचा मामा
छूट गई सब रिश्तेदारी
याद रहा मीटिंग मे जाना.
कौन जिया और कौन मरा
बातें सब छोटी मोटी
आया है जो कल जायेगा
उस पर क्या रोना धोना.
संवेदना के दो बोल भी
नहीं हमारे पास रहे
औपचारिकतावश पत्र भेजना
यह भी सेक्रेटरी का काम रहे.
अपनी मर्ज़ी से सो जाना
कभी सुबह देर से उठना
भूल चूका अमुवा की छावं
याद नहीं गंगा तट जाना.
खुल कर हँसना बातें करना
कभी साधारण बस मे चलना
सिमट गया सब घर के भीतर
मुश्किल है जन साधारण बनना.
चुपड़ी हो या रुखी खाना
आज़ादी का जश्न मनाना
बड़ा आदमी से बेहतर है
अच्छा आदमी तुम बन जाना.
मानवता की खातिर जीना
शिक्षित होना और बनाना
अपने अच्छे आचरण द्वारा
जग मे "कीर्ति "खूब फैलाना.
डॉ अ कीर्तिवर्धन
०९९११३२३७३२
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बहुत ही सुन्दर और सरस प्रस्तुति.
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