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Monday, March 18, 2013

intihaan

ये उसकी इन्तिहाँ थी ,प्यार में मुझे पाने की ,
और मेरी मजबूरी थी,खुद का वुजूद बचाने की ।
घर पर बूढी माँ और जवान बहन बैठी थी ,
मेरी जिम्मेदारी भी थी उनके सपने सजाने की ।

तू ही बता ऐ जिंदगी, मैं क्या करूँ?

डॉ अ कीर्तिवर्धन
8265821800

1 comment:

  1. जिंदगी की कशमकश.....
    गहन भाव...

    आज पहली दफा आपका blog देखा...पता ही नहीं था.
    सादर
    अनु

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