जख्म तो भर गए पर निशाँ अभी बाकी हैं,
टीस नहीं उठती मगर जज्बात अभी बाकी हैं ,
सोचता हूँ भुला दूँ पुरानी अदावतों को ,
जुबां के तीर मेरे दिल पर ,अभी बाकी हैं ।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
टीस नहीं उठती मगर जज्बात अभी बाकी हैं ,
सोचता हूँ भुला दूँ पुरानी अदावतों को ,
जुबां के तीर मेरे दिल पर ,अभी बाकी हैं ।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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