खाली खाली सा वह मकान ही तो था ,
किसी के अरमानों से सज़ा घर ना था ।
मकानों में रहने वालों के जज्बात नहीं होते,
कुछ पल के मुसाफिर ,आये और चले गए ।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
किसी के अरमानों से सज़ा घर ना था ।
मकानों में रहने वालों के जज्बात नहीं होते,
कुछ पल के मुसाफिर ,आये और चले गए ।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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