जमाने की बेरुखी ने , संभलना सीखा दिया ,
हाथ के छालों में भी , हंसना सिखा दिया ।
रोता था कभी तन्हाई में ,बेरुखी को यादकर ,
उसी का रहमो करम ,मुझे बढ़ना सीखा दिया ।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
हाथ के छालों में भी , हंसना सिखा दिया ।
रोता था कभी तन्हाई में ,बेरुखी को यादकर ,
उसी का रहमो करम ,मुझे बढ़ना सीखा दिया ।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
No comments:
Post a Comment