शब्दों के कोलाहल में जो, अंतर्मन की बात करे,
बाहर से बहरे गूंगे बन, अंतर्मन से संवाद करे।
अनगढ़ शब्दों को गढ़कर, साहित्य का निर्माता है,
दर्द छुपाकर दिल में खुद का, “आनन्द” की बात करे।
जुगनू बन तम को हरता, निज किरणों से “प्रकाश” करे,
धरा गगन के कैनवास पर, “आर्टिस्ट” अभ्यास करे।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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