बाँट दिया है मुल्क जिन्होंने, सौ सौ टुकड़ों में भाई,
हिन्दू-मुस्लिम-सिक्ख में बांटा, देश में लूट मचाई।
आज़ादी से आज तलक, सत्ता पर जिसका कब्ज़ा,
काश्मीर ब्राह्मणों से खाली, सिक्खों को मौत दिलाई।
दूध की रखवाली बिल्ली, धन पर चोरों की रहनुमाई,
सुभाष-भगत-पटेल भुलाये, बस नेहरू कि बात सुनाई।
आज वही फिर सत्ता खातिर, आतंक से हाथ मिलाते,
कालिख लग गई सारे तन पर, शर्म ज़रा ना आयी।
भूख-गरीबी और महंगाई ने, जन जन को तड़फाया ,
नित नये घोटाले रचकर, भ्रष्टाचार में होड़ मचाई।
एस जी, आर जी, एम जी लिपटे, टू जी से घोटालों में ,
रंग बदलते नेताओं ने, गिरगिट को भी धता बताई।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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