बुरा ना मानो होली है
मेरी शाखा में मेरे साथियों के नाम के साथ कुछ होली कि फुहारें -
सेठ के नाम को सार्थक बनाते हैं,
मोटा पेट हिलाते अजय नजर आते हैं।
भंग की तरंग में शिव मस्त हो जाते हैं,
आज के सर्वेश, दारु के गुण गाते हैं।
नेता से कवि बने, कीर्ति जी मुस्काएं,
काँटों का ताज अब, प्रवीण को दे आये।
जानो तुम भी साथियों, अब सेहत का राज,
हंसकर बचते काम से, निर्मल जी महाराज।
धन कुबेर देखे बहुत, अहंकार में चूर ,
सुनील सा देखा नहीं, सबसे कोसों दूर।
आनन्द में मशगूल है, करता रहता काम,
मणि यहाँ सबसे भला, आता सबके काम।
गणेश जी को चाहिए, नित लड्डू का भोग,
खाएं और आराम करें, यही भाग्य में योग।
हर समस्या का जिसके पास समाधान है,
उस धनुर्धर का ही राम निवास नाम है।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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