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Monday, March 31, 2014

धर्म एवं संस्कृति का समन्वय

"सर्वधर्म समभाव से सर्वधर्म समन्वय तक" डॉ गार्गी शरण मिश्र मराल के निबंधों का ससंग्रह है जिसमे 38 निबंधों को एक माला में गुंफित किया गया है।  इन निबंधों का मूलस्वर तो भारतीय संस्कृति, सभ्यता तथा संस्कारों का संरक्षण एवं प्रसारण ही है।  मगर सुविधा की दृष्टि से लेखक के अनुसार इन्हे 6 खण्डों -धार्मिक, सामाजिक, राजनैतिक, साहित्य कला, राष्ट्र भाषा, तथा शिक्षा सम्बधी में विभाजित कर समझने का प्रयास किया गया है।
धार्मिक विषयों पर केंद्रित आलेखों में सबसे पहला निबंध पुस्तक का शीर्षक आलेख ही है। सनातन धर्म विश्व का सर्वाधिक प्राचीन धर्म है। अन्य सभी धर्मों का कमोबेश इसी में से उदय भी हुआ। कालान्तर से आज तक सनातन धर्म की अवधारणा ही यही है कि सृष्टि के जर्रे-जर्रे में ईश्वर है, चल-अचल सबमे ही शक्ति पुंज है।  इसीलिए ही सनातन धर्म के अनुयायी सदैव सभी धर्मो, धर्मस्थलों, चार-अचार सबके आरती आदर भाव रखते हैं।  कालान्तर में अनेक धर्मों के उदय, कबीला प्रथा, वर्चस्व बनाये रखने की प्रवृति ने अन्य धर्मो तथा उनके अनुयायियों को कट्टरता के घेरे में सिमित कर दिया।  उनके यहाँ धर्म और ईश्वर प्राप्ति का आधार केवल उनके अपने धर्म की मान्यताओं तक ही सिमित है। निज धर्म को श्रेष्ठ साबित करने के प्रयासों ने सनातन धर्म की "वसुधैव कुटुंबकम् "की अवधारणा को खंडित करने का प्रयास किया है।

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